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कृष्ण-गीता काम सुखों का अंग रहा है ।
मोक्ष सुखों का प्राण कहा है । निर्विरोध हैं मिल कर होते दोनों एकाकार ॥ समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ॥२७॥
मोक्ष सहज सौन्दर्य-धाम है ।
उसका ही शृंगार काम है । सहज द्विगुण होता है पाकर उचित सभ्य शृंगार । समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ॥२८॥
दोहा जीवन तब होता सफल घनानन्दमय पार्थ ।
आ जाते जब हाथ में चारों ही पुरुषार्थ ॥२९॥ अर्जुन
घबराता मेरा हृदय होता है आघात ।
एक एक मिलना कठिन चारों की क्या बात ॥३०॥ श्रीकृष्ण--
गीत २४ पुरुषार्थ सभी तेरे हाथों में भाई । तू भूल रहा क्यों जीवन की चतुराई ॥
धर्मार्थ काम के साथ मोक्ष का नाता । चारों का है सम्मिलन जगत का त्राता । यदि मोक्ष नहीं है तो न पूर्ण सुखसाता । है मोक्ष कवच वह दुःख से न छिदपाता ।