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योगशास्त्र : पंचम प्रकार मांति हात न हो, तब पीले, श्वेत, लाल और काले बिन्दुओं से उसका निश्चय करना चाहिए।' बिन्दु देखने की विधि दो श्लोकों द्वारा कहते हैं
अंगुष्ठाभ्यां श्रुती मध्यांगुलाभ्यां नासिकापुटे । अन्त्योपान्त्यांगुलोभिश्च पिधाय वदनाम्बुजम् ॥२४९॥ कोणावणोनिपोड्याद्यांगुलीभ्यां श्वासरोधतः ।
यथावणं निरीक्षेत बिन्दुमव्यप्रमानसः ॥२५०॥ अर्थ- दोनों अंगठों से कान के दोनों खिों को, बीच की अगुलियों से नासिका के दोनों छिद्रों को, अनामिका और कनिष्ठा अंगुलियों से मुख को और तर्जनी अंगुलियों से आंस के दोनों कोनों को दबा कर श्वासोच्छ्वास को रोक कर शान्तचित्त से देखे कि भ्रकुटि में किस वर्ण के बिन्दु विखाई देते हैं ? बिन्दुशान से पवन-निर्णय करते हैं
पोतेन बिन्दुना भौम, सितेन वरुणं पुनः ।
कृष्णेन पवनं विद्याद्, अरुणेन हुताशनम् ।।२५१॥ अर्थ-पीली बिन्दु दिखाई दे तो पुरन्दरवायु, श्वेतबिन्दु दिखाई दे तो वरुणवायु, कृष्णबिन्दु बोखे तो पबनवायु और लाल बिन्दु दिखाई दे तो अग्निवायु समझना चाहिए। अनभीप्सित नाड़ी चलती रोक कर दूसरी इष्ट नाड़ी चलाने के उपाय बताते हैं -
निरूत्सेद् वहन्ती या वामां वा दक्षिणामय ।
तदंगं पीडयेत् सद्यो, यथा नाडीतरा बहेत् ॥२५२॥ अर्थ-चलती हुई बांयी या दाहिनी नाड़ी को रोकने की अभिलाषा हो तो उस मोर के पार्श्व-(बगल) भाग को दबाना चाहिए। ऐसा करने से दूसरी नाड़ी चालू हो जाती है और चालू नाड़ी बन्द हो जाती है।
अग्रे वामविभागे हि, शशिक्षवं प्रचक्षते । पृष्ठे दक्षिणभागे तु, रवि-क्षेत्रं मनोषिणः ॥२५३। लाभालाभौ सुखं दुखं, जीवितं मरणं तथा ।
विदन्ति विरलाः सम्यग वायुसंचारवेदिनः । २५४॥ अर्थ-पिज्जनों का कथन है कि शरीर के बांये भाग में आगे की ओर चन्द्र का मंत्र है और दाहिने भाग में पीछे की ओर सूर्य का क्षेत्र है। अच्छी तरह से वायु के संचार को मानने वाले पुरुष लाभ-अलाम, सुख दुःख, जीवन-मरण भलीभांति जान सकते हैं।
अब नाड़ी की शुद्धि पवन के संचार से जान सकने की विधि कहते हैं