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________________ योगशास्त्र:पंचम प्रकाश देखने पर उसे पुरुष की आकृति दिखाई देगी। यदि उस प्राकृति में उसे अपना मस्तक न दिखाई दे तो समझ लेना कि मेरो मत्यु होने वाली है, यदि उसे अपना बांई मुजा न दिखाई दे तो पुत्र या स्त्रीको मृत्यु होतो है और दाहिनो भुजा न दिखाई दे तो भाई को मृत्यु होतो है। यदि अपना हाय न दिखाई दे तो अपनो मृत्यु होती है, और पेट न दिखाई दे तो उसके धन का नाश होता है । यदि अपना गुहास्थान न दिखाई दे तो अपने पिता आदि पूज्यजन को मृत्यु होती है, और दोनों जांघे नही दिखाई दें तो शरीर में व्याधि उत्पन्न होती है। यदि पैर न दीखें तो उसे विदेशयात्रा करनी पड़ती है, और अपना सम्पूर्ण शरीर विखाइ न व तो उसको शीघ्र ही मृत्यु होती है। काल ज्ञान के अन्य उपाय कहते हैं विद्यया दर्पणाङ गुष्ठ-कुड्यासि (दि) ष्ववतारिता। विधिना देवता पृष्टा, व ते कालस्य निर्णयम् ॥१७३॥ सूर्येन्दुग्रहणे विधौ, नरवीरे ! ठ ठेत्यसौ । साध्या दशसहस्रयाऽष्टोत्तरया जपकर्मतः ॥१७॥ अष्टोत्तरसहस्रस्य, जपात् कार्यक्षणे पुनः। देवता लोयतेऽस्यादौ, ततः कन्याऽऽह निर्णयम् ॥१७॥ सत्साधकगुणाकृष्टा, स्वयमेवाथ देवता। विकाल-विषयं ब्रूते, निर्णयं गतसंशयम् ॥१७६॥ अर्थ-गुरु महाराज के द्वारा कथित विधि के अनुसार विद्या के द्वारा वर्पण, अंगठे दीवार या तलवार आदि पर विधिपूर्वक उतारी हुई देवता आदि की आकृति प्रश्न करने पर काल (मृत्यु) का निर्णय बता देती है ॥१७३॥ सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण का समय हो, तब 'ॐ नरवीरे ठः ठः स्वाहा इस विद्या का बस हजार आठ बार जाप करके इसे सिद्ध कर लेना चाहिए । १७४॥ जब इस विद्या से कार्य लेना हो तो एक हजार आठ बार जाप करने से वह पण, तलवार आदि पर अवतरित हो जाती है ।।१७॥ उसके बाद दर्पण आदि में एक कुमारी (निर्दोष) कन्या को दिखलाना चाहिए । जब कन्या को उसमें देवता का रूप दिखाई के, तब उससे आयु का प्रश्न करके निर्णय करना चाहिए। अथवा उत्तम प्रकार के साधक के गुणों से आकृष्ट हो कर देवता अपने आप हो निःसंदेह त्रिकाल-सम्बन्धी आयु का निर्णय बता अब पांच श्लोकों द्वारा शकुन द्वारा कालज्ञान बताते हैं अथवा शकुना विद्यात्, सज्जो वा यदि वाऽऽतुरः। स्वतो वा परतो वाऽपि, गहे वा यदि वा बहिः ॥१७७॥ अहि-वृश्चिक-कृम्याखु-गृहगोधा-पिपीलिकाः। यूका-मत्कुण-सूतारच, वल्मीकोऽयोपवेहिकाः ॥१७॥
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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