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________________ मन्दोदरी द्वारा सीता को रावण से प्रीति जोड़ने के लिए निवेदन २११ बाज तो प्रसन्नता की मुद्रा में है।' रावण ने सोचा-'अवश्य ही सीता अब राम को भूल कर मेरे साथ प्रीति जोड़ने की इच्छा से प्रसन्न हुई है।' उसने मंदोदरी को बुला कर आदेश दिया--'देवी ! तुम जा कर सीता को समझाओ । इम समय अच्छा मौका है।' पति के दौत्यकार्य को करने के लिए मंदोदरी सीता के पास पहुंची। सीता को प्रलोभन दे कर विनीत बन कर वह मीता से इस प्रकार कहने लगी--- 'देखो, सोते ! रावण बहुत बड़ा राजा है, अपूर्व ऐश्वर्य, सौन्दर्य आदि अनेक गुणों से सुशोभित है । रावण की रूपलावण्यादि सम्पदा भी तेरे अनुरूप है । दुःख है, अज्ञदेव तुम दोनों का संयोग न करा सका । परन्तु अब वह योग आया है। अत: तुम्हारे ध्यान में अहनिशलीन रावण के पास जाओ, उसकी सेवा करो और आमोद-प्रमोद में अपना जीवन बिताओ। हे सुनयने ! दूसरी सब रानियां तुम्हारी आज्ञा का पालन करेगी।' यह सुन कर सीता ने निरस्कारपूर्वक मंदोदरी से कहा - 'अगे पति का दूतकार्य करने वाली पापिनी ! दुर्मुखी ! शर्म नहीं आती, तुम्हें ऐसा कहते ! तेरे पति के समान तेरा भी मुख देखने योग्य नहीं है। यह समझ ले कि मैं गम के पास ही हूँ। क्योंकि लक्ष्मण यहाँ आया है। वह खर आदि के समान बन्धुओं सहित तुम्हारे पति को मारेगा। पापिनी ! तुम यहाँ से खड़ी हो जाओ। अब मेरे साथ बात भी मत करो।' इस प्रकार अपमानित हो कर मन्दोदरी रोषपूर्वक वहाँ से चल पड़ी। मदोदरी के जाने के बाद हनुमान पेड़ से नीचे उतरा और विनयपूर्वक सीता को नमस्कार करके हाथ जोड़ कर बोला - 'देवि ! आपके भाग्य से लक्ष्मणसहित श्रीराम कुशलपूर्वक हैं, विजयी है । श्रीराम की आज्ञा से मैं आपका समाचार पाने के लिए यहाँ आया हूँ। मैं वापिस लौट कर उन्हें आपके समाचार कहूंगा। फिर श्रीराम शत्र का संहार करने के लिए यहाँ आएंगे। पति के दूत और उनके प्रतीक के रूप में मुद्रिका अर्पित करने वाले हनुमान को देख कर सीता अत्यन्त प्रसन्न हुई । उसने हनुमान को अपने अमोघ आशीर्वाद से अभिनन्दित किया। उसके पश्चात् हनुमान के आग्रह से और श्रीराम के समाचार मिलने से प्रसन्न होकर सीता ने १९ उपवास का पारणा किया। पवन के समान स्फतिमान पवनपुत्र हनुमान ने अपने बल का चमत्कार बताने के लिए वहां के पेड़पौधे, पत्ते, फल, डालियाँ आदि तोड़-तोड कर रावण का उद्यान नष्टभ्रष्ट कर डाला। उद्यान को नष्टभ्रष्ट होते देख उद्यान-पालकों ने हनुमान को पकड़ कर सजा देना चाहा, परन्तु वह किसी के पकड़ में नहीं आ रहा था । आखिर उद्यानपालकों ने गवण के पास जा कर शिकायत की। रावण ने हनुमान को पकड़ने और पकड़ा न जा सके तो मार डालने की आज्ञा दी। रावण के कुछ सिपाहियों को ले कर उद्यानपालक उद्यान में आए ; परन्तु अकेले हनुमान ने ही उन सबको मार भगाए । सचमुच, 'युद्ध में विजय की गति विचित्र होती है।' रावण ने हनुमान को बांध कर लाने के लिए शऋजित को आज्ञा दी। उसने पाशबन्धन अस्त्र फेंका। हनुमान उसमें अपने आप ही बंध गया। हनुमानजी को बांध कर शक्रजित रावण के पास ले गया ; लेकिन यह क्या ? हनुमान ने चट से पाशबन्धन तोड़ा और रावण का मुकुट चूर-चूर करने के लिए बिजली के दंड के ममान पैर ऊपर उठाया। रावण घबरा कर जोर से चिल्लाया- 'अरे ! है कोई यहाँ ? पकड़ो इसे, मारो इम बदमाश को।' हनुमान ने तत्काल वहां से छलांग लगाई और थोड़ी ही देर में सारी नगरी में घम-म कर उसे उजाड़ दी ; अनाथ-की-सी बना दी। पैर से ढोल को तोड़ने की तरह नगरी की कई ईमारतें तोड डालीं। इस प्रकार क्रीडा करते हुए हनुमान गरुड के समान उड कर श्रीराम के पास पहुंचे। नमस्कार करके हनुमान ने आद्योपान्त सारा वृत्तान्त सुनाया। राम ने अपने प्रियसेवक का छाती से गाढ़ आलिंगन किया। फिर सुग्रीव आदि को विजययात्रा के लिए लंका जाने की आज्ञा दी। रावण की रक्षा करने वाले समुद्र पर सेतुबन्ध (पुल) बांध कर श्रीराम की सेना ने समुद्र पार किया।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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