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भेद
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५-पंचम प्रकाश
५५ से ५६० प्राणायाम का मनःशुद्धि के साथ सम्बन्ध ५१५ प्राणायामः स्वरूप, प्रकार, लाभ और
५१७ पंचवायु का वर्णन, प्राणादिजय से लाभ और उपाय धारणा : लक्षण, उपाय और फल ५२६ पार्थिव आग्नेय, वारुण और वायव्य मंडल का स्वरूप
५२३ प्राण-वायु द्वारा कार्य की सफलताअसफलता का ज्ञान
५-५ स्वर द्वारा ईष्टफल का ज्ञान इडा, पिंगला, सुषम्णा से कालादि का ज्ञान आंख, कान आदि अवयवों से होने वाला कालज्ञान
५३७ कालज्ञान के शकुन आदि विविध उपाय ४३८ उपश्रुति, शनैश्चर, लग्न, यंत्र, विद्या, मंत्र, छाया बादि द्वारा कालज्ञान ५७ विभिन्न मंडलों द्वारा ईण्टानिष्टनिर्णय ५५३ वायु के निर्णय का उपाय
५५४ नाडी बदलने एवं नाड़ी की शुद्धि का उपाय तथा नाड़ी-संचारज्ञान का फल ५५६ परकायप्रवेशविधि और फल
५५८ - षष्ठ प्रकाश
५६१ से ५६७ परकायप्रवेश पारमार्थिक नहीं
५८१ प्राणायाम, प्रत्याहार एवं धारणा इनका लक्षण व फल
५६२ ७-सप्तम प्रकाश
५६३ से ५६७ ध्यान का क्रम, लक्षण, पिंडस्थ आदि ४ ध्येय रूप ध्यान पाथिवी, आग्नेयी, मारुती, वारुणी और तत्व नामक ५ धारणाएं पांचों धारणाओं का लक्षण
५६५ पिंडस्थध्यान का लक्षण
२.६७
--अष्टम प्रकाश ५६८ से ५८१ पदस्थ ध्यान का लक्षण, विधि और उमका फल पद (मंत्र)मयी देवता का स्वरूप और उसकी विधि उसका फल विविध सत्रों और विद्याओं के ध्यान की विधि और उसका फल पंचपरमेष्ठीवाचक देवों का ध्यान और उसकी विधियां और फल मायाबीज हीं एवं क्ष्वी विद्या के ध्यान की विधि व उसका फल पंच-परमेष्ठी-मंत्रबीज आदि का स्मरण ५५० वीतरागतायुक्त पदों का ध्यान ही पदस्थ ध्यान
५८१ 8- नवम प्रकाश
५८२ से ५८४ रूपस्थध्यान का स्वरूप, विधि और उसका फल तथा असद्ध्यान त्याज्य ५८२ - दशम प्रकाश
५८५ से ५६१ रूपातीतध्यान का स्वरूप और फल ५५५ पिण्डस्थ आदि चारों ध्यान तथा धर्मध्यान के ४ पाद
५८६ धर्मध्यान का स्वरूप तथा उसका इहलौकिक पारलौकिक फल एकादशम प्रकाश ५६२ से ६०५ शुक्लध्यान का स्वरूप, चार भेद एवं उनकी विशेष व्याख्या शुक्लध्यान के ४ भेद और उनका स्वरूप
५६३ शक्लध्यान के ४ भेदों में योग की मात्रा ६५ शुक्लध्यान के चारों भेदों के अधिकारी एवं फल शुक्लध्यान का पारम्परिक फल : तीर्थकरत्व तथा उसका प्रभाव ५६८ केवलज्ञानी द्वारा शीघ्र कर्ममय के लिए समुद्घात-प्रक्रिया और उसकी विधि ६०१
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