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८० धर्म के दशलक्षरण
का क्या अपराध है ? गलती तो मेरे ज्ञान या वाणी में हुई है । गलती सदा ज्ञान या वारणी में ही होती है, वस्तु में नहीं ।
गलती जहाँ हो वहाँ मेटनी चाहिए । जहाँ हो ही नहीं, वहाँ मिटाने के व्यर्थ प्रयत्न से क्या लाभ ? दाग चेहरे पर है और दिखाई दर्पण में देता है । कोई दर्पण को साफ करे तो दाग नहीं मिटेगा, परन्तु दर्पण के साफ हो जाने से और अधिक स्पष्ट हो जाएगा । दाग मिटाने के लिए चेहरे को धोना चाहिए ।
फोटोग्राफर के पास जाकर लोग कहते हैं मेरा बढ़िया फोटो खींच दीजिए । पर भाई साहब ! फोटो तो आपकी जैसी सूरत होगी वैसा आएगा, बढ़िया कहाँ से आ जाएगा ? आपको अपना फोटो खिचाना है - कि बढ़िया ? आपका खिंचेगा तो बढ़िया न होगा, ग्रौर फोटो बढ़िया होगा तो फिर वह आपका नहीं होगा । क्योंकि यदि आपकी सूरत ही बढ़िया न हो तो फोटो बढिया कैसे आएगा ?
वस्तुतः तो जैसा है वैसे का नाम बढिया है, पर दुनिय कहाँ मानती है ? किसी के एक प्रांख है और फोटो में दोनों श्रा जाऐं नो फोटो बढ़िया हो जाएगा ? बढिया भले कहा जाय पर वह वास्तविक न होगा । हम तो वास्तविक को ही बढ़िया कहते हैं ।
वस्तु जैसी है वैसी जानने का नाम सत्य है; अच्छी-बुरी जानने का नाम सत्य नहीं । वस्तु में अच्छे-बुरे का भेद करना राग-द्वेष का कार्य है । ज्ञान का कार्य तो वस्तु जैसी है वैसी जानना है ।
हम किसी वस्तु को कहीं गुरक्षित रखकर भूल जाते है कहते हैं कि अमुक वस्तु खो गई है । पर वस्तु खोई है या उसका ज्ञान खोया है । वस्तु तो जहाँ रखी थी वहाँ अभी भी रखी है । वस्तु को नहीं, उसके ज्ञान को खोजना है ।
असत्य या तो वाणी में होता है या ज्ञान में; वस्तु में नहीं । वस्तु में असत्य की सत्ता ही नहीं है । वस्तु को अपने ज्ञान और वारणी के अनुरूप नहीं बनाया जा सकता और बनाने की आवश्यकता भी नहीं है । आवश्यकता अपने ज्ञान और वारगी को वस्तुस्वरूप के अनुरूप बनाने की है । जब ज्ञान और वारणी वस्तु के अनुरूप होंगे तब वे सत्य होंगे। जब प्रात्मा सत्स्वभावी- आत्मा के आश्रय से वीतराग परिरगति प्राप्त करेगा तब सत्यधर्म का धनी होगा । जितने अंश में प्राप्त करेगा उतने अंश में सत्यधर्म का धनी होगा ।