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उत्तमक्षमा D२५
उनसे मेरा कहना है कि ऐसा कोई व्यक्ति बताइए कि जिसकी हम प्रशंसा करें और उसे क्रोध आवे । प्रशंसा सुनकर तो लोगों को मान आता है, क्रोध नहीं । क्षमा का धारी तो वह है, जिसे गालियां सुनकर भी क्रोध न आवे ।
___ यहाँ तो और भी ऊँची बात की है। क्रोध की उग्रता तो दूर, मन में भी खेद तक उत्पन्न न हो, तब क्षमा है । किन्हीं बाह्य कारणों से क्रोध व्यक्त न भी करे, पर मन में खेद-खिन्न हो जावे तो भी क्षमा कहाँ रही ? जैसे -मालिक ने मुनीम को डाँटा-फटकारा, तो नौकरी छूट जाने के भय से मुनीम में क्रोध के लक्षण तो प्रकट नहीं हुए, पर खेद-ग्विन्न हो गया तो वह क्षमा नहीं कहला सकती। इसीलिए तो लिखा है :- “गाली सुनि मन खेद न पानी।"
जो 'गाली मुनकर चांटा मारे', वह काया की विकृति वाला है। 'गाली सुनकर गाली देवे', वह वचन की विकृति वाला है । 'गाली सुनकर खेद मन में लावे', वह मन की विकृति वाला है। परन्तु 'गाली सुन मन खेद न आवे', वह क्षमाधारी है।
इसके भी आगे कहते हैं कि 'गुन को औगुन कहै बखानौ ।' हों हम में गुण, और सामने वाला प्रोगुणरूप से वर्णन करे, और वह भी अकेले में नहीं - भरी सभा में, व्याख्यान में ; फिर भी हम उत्तेजित न हों तो क्षमाधारी हैं।
कुछ लोग कहते हैं भाई ! हम गालियाँ बर्दाश्त कर सकते हैं, पर यह कैसे संभव है कि जो दुर्गुण हममें हैं ही नहीं, उन्हें कहता फिरे। उन्हें भी अकेले में कहे तो किसी तरह सह भी लें, पर भरी सभा में, व्याख्यान में कहे तो फिर तो गुस्सा आ ही जाता है। ___ कवि इसी बात को तो स्पष्ट कर रहा है कि गुस्सा आ जाता है, तो वह क्षमा नहीं; क्रोध ही है। मान लो तब भी क्रोध न आवे, हम सोच लें-बकने वाले बकते हैं तो बकने दो, हमें क्या है ?पर जब वह हमारी वस्तु छीनने लगे तब ? वस्तु छीनने पर भी क्रोध न करें, पर वह हमें बांध दे, मारे और भी अनेक प्रकार पीड़ा दे तब ? इसी के उत्तर में कवि ने कहा है :- "वस्तू छीने, बाँध मार बहविधि करै।"
'बहुविधि करें' शब्द में बहुत भाव भरा है। पाप में जितनी सामर्थ्य हो इसका अर्थ निकालिए । आज पीड़ा देने के अनेक नए-नए उपाय निकाल लिए गए हैं । विदेशी जासूसों के पकड़े जाने पर उनसे शत्रुओं के गुप्त भेद उगलवाने के लिए अनेक प्रकार की अमानुषिक