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२२ धर्म के दशलक्षरण
क्रोध एक शान्ति भंग करने वाला मनोविकार है । वह क्रोध करने वाले की मानसिक शान्ति तो भंग कर ही देता है, साथ ही वातावरण को भी कलुषित और प्रशान्त कर देता है । जिसके प्रति क्रोध-प्रदर्शन होता है, वह तत्काल अपमान का अनुभव करता है और इस दुख पर उसकी भी त्यौरी चढ़ जाती है । यह विचार करने वाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध प्रकट किया जा रहा है वह उचित है या अनुचित !
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क्रोध का एक खतरनाक रूप है बैर । बेर क्रोध से भी खतरनाक मनोविकार है । वस्तुतः वह क्रोध का ही एक विकृत रूप है । बैर क्रोध का प्रचार या मुरब्बा है । क्रोध के आवेश में हम तत्काल बदला लेने की सोचते हैं । सोचते क्या हैं - तत्काल बदला लेने लगते हैं । जिसे शत्रु समझते हैं, क्रोधावेश में उसे भला-बुरा कहने लगते हैं, मारने लगते हैं । पर जब हम तत्काल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न कर मन में ही उसके प्रति क्रोध को इस भाव से दवा लेते हैं कि अभी मौका ठीक नहीं है, अभी प्रत्याक्रमण करने से हमें हानि हो सकती है, शत्रु प्रबल है, मौका लगने पर बदला लेंगे; तब वह क्रोध बैर का रूप धारण कर लेता है और वर्षों दबा रहता है तथा समय आने पर प्रकट हो जाता है ।
ऊपर से देखने पर क्रोध की अपेक्षा यह विवेक का काम विरोधी नजर आता है, पर यह है क्रोध से भी अधिक खतरनाक ; क्योंकि यह योजनाबद्ध विनाश करता है, जबकि क्रोध विनाश की योजना नहीं बनाता, तत्काल जो जैसा संभव होता है, कर गुजरता है । योजनावद्ध विनाश सामान्य विनाश से अधिक खतरनाक और भयानक होता है ।
यद्यपि जितनी तीव्रता और वेग क्रोध में देखने में आता है - उतना बैर में नहीं, तथापि क्रोध का काल बहुत कम है, जबकि बैर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है ।
क्रोध और भी अनेक रूपों में पाया जाता है । झल्लाहट, चिड़चिड़ाहट, क्षोभ आदि भी क्रोध के ही रूप हैं । जब हमें किसी की कोई बात या काम पसन्द नही आता है और वह बात बार-बार हमारे सामने आती है तो हम झल्ला पड़ते हैं। बार-बार की झल्लाहट चिड़चिड़ाहट में बदल जाती है । झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट असफल क्रोध के परिणाम हैं। ये एक प्रकार से क्रोध के हलके-फुलके रूप हैं । क्षोभ भी क्रोध का ही अव्यक्त रूप है ।