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१८२ 0 धर्म के बराललारण * वयोवट विद्वान् स. पं० मुन्नालालजी रांघेलीय(वर्णी), न्यायतीर्थ, सागर, म०प्र०
डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित पुस्तक 'धर्म के दशलक्षण' की प्रशंसा पर्याप्त की जा रही है, वह योग्य है, उसमें कोई प्रत्युक्ति नहीं है। उमको हम दूसरे रूप में लेते हैं। वह प्रशंसा जड़पुस्तक की नहीं है, अपितु उसके लेखक समाजमान्य चेतनशान-धनी पं० भारिल्लजी की है । नई पीढ़ी में पंडितजी जैसे तलस्पर्शी तत्त्वज्ञ विद्वानों की अत्यन्त प्रावश्यकता है, खाली पदवीधारियों (लेबिलों) की नही । यद्यपि पंडितजी में और भी अनेक विशेषताएं (कलाऐं) हैं, तथापि जो तत्काल आवश्यक है वह तर्कग्गा और प्रतिभा का संगम है, जो सोने में सुगंध है; वह भारिल्लजी में है ।
वास्तव में धर्म का स्वरूप और उसके दश अंगों का चित्रण प्राजकल की भाषा में और अाजकल के ढंग (वैज्ञानिक तरीका) में प्रतीव सुन्दर
(मनोहारी) किया है जिसका हम हार्दिक समर्थन करते है । • स्वस्तिथी भट्टारक चालकीति पणिताचार्य, एम०ए०, शास्त्री, मूडविद्रो
समाजमान्य विवर्य डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा लिखित 'धर्म के दशलक्षण' देखकर परम हर्ष हुमा । इसमे कोई दो राय नहीं है कि डॉ० भारिल्लजी सिद्धहस्त लेखक हैं और है प्रबुद्ध वक्ता । ....."उत्तमक्षमादि दशधर्मों का सूक्ष्म विश्लेषण सरल शैली में व्यक्त किया गया है। इस कर्तृत्त्व की सर्वोपरि विशिष्टता यह है कि इसमे दशधमों का तात्त्विक दृष्टि से मरस, सरल व सुबोध शैली से प्रतिपादन किया गया है । इस दृष्टि से दशधर्मों का विवेचन प्रायः अब तक देखने में नही आया है । दशधों पर प्रस्तुत और भी जो कृतियां हैं, उनमें भी प्रायः तात्विक दृष्टि से विवेचन का पक्ष अगोचर ही रहा है। विद्वान लेखक ने उत्तमक्षमादि प्रत्येक धर्म पर तथ्यात्मक, रोचक व बहुत ही सुन्दर ढंग से सफल लेखनी चलाई है । नयनाभिराम मुद्रणादि से सम्पन्न प्रस्तुत 'धर्म के दशलक्षण' उपहार से पाठकों तथा समाज को सत्पथ का दिग्दर्शन तो होगा ही, साथ ही प्रात्मा के धर्म को पाने के लिए भी सम्यक् दिशा प्राप्त होगी।
-चारकोति * पं० खोमचन्दभाई जेठालाल शेठ, सोनगढ़ (गुजरात)
मात्मा की पर्युपासना करने का महान मंगलमय पर्व ही पर्युषण है। दशलमण धर्म की पाराधना मुख्यतया पूज्य मुनिराजों द्वारा होती है, उसका स्पष्ट निर्देशन रॉ० हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित 'धर्म के दशलक्षण' नामक पुस्तक में मिलता है। श्री शास्त्रीजी अभिनव दृष्टि से विचार करने वाले हैं, सब लेखों में उनके व्यक्तित्व का प्रभाव प्रानन्द का अनुभव कराता है। इस पुस्तक में उन्होंने दशधर्मों का विवेगन सर्वजन-संमत शैली से किया है, वह प्रतीव