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१६ धर्म के दशलक्षरण
यदि मुनियों को अनन्तानुबंधी आदि तीन कपायों के प्रभावरूप उत्तमक्षमादि धर्म होंगे तो पंचम गुणस्थानवर्ती ज्ञानी श्रावकों के अनन्तानुबंधी यादि दो कषायों के प्रभावरूप उत्तमक्षमादि धर्म होंगे । इसीप्रकार चतुर्थ गुरणस्थानवर्ती प्रविरत सम्यग्दृष्टि के एकमात्र अनन्तानुबंधी कषाय के प्रभावरूप धर्म उत्तमक्षमादि धर्म प्रकट होंगे । मिथ्यादृष्टि के उनमक्षमादि धर्म नहीं होते । उसकी कषायें कितनी भी मंद क्यों न हों, उसके उक्त धर्म प्रगट नहीं हो सकते, क्योंकि उक्त धर्म कषाय के प्रभाव मे प्रकट होने वाली पर्यायें है, मंदता से नहीं । मंदता से जो तारतम्यरूप भेद पड़ते हैं, उन्हें शास्त्रों में लेश्या मंज्ञा दी है, धर्म नहीं । धर्म तो मिथ्यात्व और कपाय के प्रभाव का नाम है, मंदता का नहीं ।
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इन धर्मों की व्याख्या अनेक पहलुओं (दृष्टिकोणों) से संभव है । जैसे मुनियों और श्रावकों की अपेक्षा निश्चय और व्यवहार की अपेक्षा, अन्तर और बाह्य की अपेक्षा ग्रादि ।
इनमें से प्रत्येक धर्म स्वतंत्ररूप से विस्तृत व्याख्या की अपेक्षा रखता है । श्रागे प्रत्येक पर विस्तृत विश्लेपरण किया ही जारहा है । अतः अब यहाँ इस पवित्र भावना के साथ विराम लेता हूँ कि इस दशलक्षरण महापर्व के पावन अवसर पर सभी आत्माएँ धर्म के उक्त दश लक्षणों को अच्छी तरह जानकर, पहिचानकर, तद्रूप परिणमन कर परमसुखी हों।