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| सचिवेण समं सामत्थिऊण तो नरवरेण दिन्नाई । बारस गामसयाई तस्स पभूयं च धणकणयं ॥८॥ तो जिणधम्मपभावेण पइदिणं वडूमाणधणनिवहो । उवरूढसिणेहाहिं दोहिं वि भजाहिं ताहिं समं ॥ सेवइ विसयसुहाई सलाहणिजाई सयललोयस्स । कुणइ य जिणधम्म दिदृपच्चओ सो विसुद्धमणो ॥ जिन्नाई उद्धरेई जिणभवणाई नवाई कारेइ । विहिणा वियरइ दाणाइं सुणइ सुगुरूण वयणाई॥८४॥ उवविद्याणं गोहीइ अन्नया जंपियं नरिंदेण | पेच्छह दुग्गय ! सउणा तुह सच्चफला किहं जाया ? ॥८५॥
__ अह भणइ सो नराहिव ! सउणा न फलंति न य असउणा वा।
निच्छयओ सुहफलओ धम्मो दुक्खपफलं पावं ॥८६॥ जं एरसया सउणा अणेयवाराउ मह पुरा जाया। पावोदएण तह विहन किंचि पत्तं फलं पवरं ॥८७॥ इहि तु असउणावि हु जायंति कयाइ कजकिरियासु । सुहफलया चेव हवंति तह विधम्मप्पभावेण ॥ ता धम्म चिय नरवर ! करेसु जो पोढयं समणुपत्तो । लोहाइं व पावाइं रसो व्व वरकंचणत्तेण ॥८९॥ | परिणमइ सुहफलत्तेण कुणइ सुहियं समग्गजियलोयं । पूरइ मणोरहे सग्गमोक्खसोक्खाइं वियरेइ ॥ इह लोए चिय सुहभावसेविओ होइ सुहफलो धम्मो | अहमेव उदाहरणं एत्थ पुरा पावकम्मेहिं ॥११॥ एगंतदुत्थिओ सुत्थिओ य इहिं सुचिन्नजिणधम्मो । इचाइसुजुत्तीहिं पडिबोहइ सो महीनाहं ॥९२॥
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