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नवापि गाथाः पाठसिद्धाः । कौशाम्बीनगरीविप्राख्यानकं तूच्यतेवच्छाजणवयमझे कोसंबी नाम अत्थि वरनयरी। जा रायहंसचक्कोहिं सहइ सह जउणसरियाए ॥१॥ आजम्मदरिदो तीइ माणो वसइ सोमिलो नामं । तो तस्स भोयणाई सम्मं संपडइ न कयाइ ॥२॥ करयरइ सया भजा रुयंति अणवरयमेव डिंभाइं । पत्थंतोऽवि न पावइ इच्छियकणभिक्खमाईयं ॥३॥ अह दुक्खिए गमंते कालं एयम्मि गुब्विणी भज्जा | पभणइ आणह मोल्लं कओ वि मह घयगुडाईणं ॥४॥ तत्थ असंपज्जंते एयम्मि वि सो विणिग्गओ तत्तो | तस्स उवजणहेउं दुक्खत्तो भमइ देसेसु ॥५॥
तह भममाणस्स य तस्स उयरभरणं पिजा न संपडइ ।
निम्विन्नो ताव गओ कत्थइ विजामढे भमिरो ॥६॥ | एक्को य उवज्झाओ बह्वण चहाण वित्थरेण तहिं । परिकहइ नीइसत्थं तत्थ य अत्थो इमो पगओ ॥७॥ | जाई रूयं विजा तिन्नि वि निवडंतु कंदरे विवरे । अत्थो चिय परिवउ जेण गुणा पायडा होंति ॥८॥ विहवुज्जोएण विणा दारिदमहंधयारपिहियाई । सेसगुणग्धवियाई वि नजति न पुरिसरयणाई ॥९॥ अलियं पि जणो धणवइत्तयाण सयणत्तणं पयासेइ | परमत्थबंधवेण वि लज्जिज्जइ झीणविहवेण ॥१०॥
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