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कमलिणिनामा देवी अन्ना तस्सऽत्थि वरनरिंदस्स | भाणू रामो परमो कित्तिधणो नाम अणुकमसो |५| तीसे चउरो पुत्ता पुरिसत्था इव जणस्स अइइट्ठा | रयणागरा इव तहा बहुगुणरयणा गभीरा य ॥ ६ ॥ वररूवलक्खणधरा सत्तधणा अहव एत्थ किं बहुणा ? भीमो विसं इमे पुण अमयं चिय सव्वलोयस्स ॥ मतिसागरो त्ति नामेण तस्स रन्नो य अस्थि वरमंती । उप्पत्तियाइचउविहवुद्धिजुओ सावओ निउणो । तस्य मई विमलो बहस्सई मइधणो य नामेण । चत्तारि सुया बहुवुद्धिसंज्या गुणसमिद्धाय ॥ ९ ॥ ततो भीमो सावबंधुणो कुट्टए पवतो । सामंतमंडलाहिवपुत्ते वि न छड्डड्इ कहिं पि ॥ १०॥
मइसागरस्स वि सुए सुमई मोत्तूण सेसए तिन्नि । तह बाहए सया वि हु जह ते सहिउं न तीरंति ॥ ११ अह नायममचेणं भीमस्स दुचेट्ठियं तयं सव्वं । देहस्स लक्खणाणि य निरिक्खए निउणदिट्ठीए || १२ || तो चिंतेइ अमचो पेच्छसु कह संकडं समावडियं १ । जं एस ओ नूणं होही रन्नो विणासयरो ॥ १३ ॥ तो जइ न कहेमि इमं तस्स हवइ तो उवेहिओ सामी ।
अह व कमि तहा पुण मरणं पि हु अप्पणो नूणं ॥ १४॥
संकेमि भीमजणणीपासाओ ता किमेत्थ मह जुत्तं ? | अहवा किं एएणं ? उवेहियत्र्वो न ता सामी ॥१५ इच्चाइ चिंतिऊणं अन्नदिणे ठाविऊण एगंते । पभणइ निवं अमच्चो देव ! इमा सुव्व नीई ॥ १६ ॥
॥ ९१ ॥