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ॐ ह्री तपोवृद्धि ऋद्धिसिद्वेभ्यो नम अध्यं । सिद्ध सिंहक्रीडित आदि विधानतें, नित बढावत तप विधि मानते । वि०४ महामुनीश्वर तप परकाशते, नमू मुक्ति भये जगवासते ॥२८॥ .
ॐ ह्री महातपोऋद्धिसिद्ध म्यो नमः अध्यं । ३ शिखरि-गिरि ग्रीषम, हिम सर-तटै, तरु निकट पावस निजपद रटै। घोर परिषह करि नाहीं हट, भये सिद्ध नमत हम दुख कट ॥२६॥
ॐ ह्री घोरतपोऋद्धिसिद्धम्यो नम अर्घ्य । महाभयंकर निमित मिलै जहां, निरविकार यती तिष्ठ तहां । महापराक्रम गुरणकी खान है, नमो सिद्ध जगत सुखदान है॥३०॥
ॐ ह्री घोरगुणऋद्धिसिद्धभ्यो नम अध्यं । १ सघन गुरणकी रास महायती, रत्नराशि समान दिपै अती। . ३ शेष जिन वर्णन करि थकि रहै, नमू सिद्ध महापदको लहै ॥३१॥
ॐ ह्री घोर गुणपरिक्रमाण ऋद्धि सिद्धेभ्यो नम' अध्यं । अतुल वीर्य धनी हन कामको, चलत मन न लखत सुख धामको। बालब्रह्मचारी योगीश्वरा, नमू सिद्ध भये वसुविधि हरा ॥३२॥
प्रयम
पूजा