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है जगवंदन परसत पद चन्दन, महाभाग उपजाई । सिद्ध हरिहर आदि लोकवर उत्तम, कर धर शीश चढाई ॥प्रभु पूजोरे० विह्री नमो सिद्धाण श्री सिद्ध परमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गा२४ । हण अगुरुल घुमवावा बत्तीसगुग्णसयुक्ताय समारतापविनाशनाय चन्दनं० ॥ २ ॥
शिवनायक पूजन लायक है, यह महिमा अधिकाई। अक्षयपद दायक अक्षत यह, सांचो नाम धराई ॥प्रभु पूजोरे० ___ॐ ह्री नमो मिद्धाण श्रीसिद्धपरमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीयं सुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुलघुमवावाह बत्तीमगुणसयुक्ताय प्रक्षयपदप्राप्तये अक्षत ॥ ३॥ *कामदाह अति ही दुखदायक, मम उरसे न टराई। ताहि निवारण पुष्प भेट धरि, मांगू वर शिवराई ॥प्रभु पूजोरे० ____ॐ ह्री नमो सिद्धारण श्री गिद्धपरमेष्ठिने श्री समतणाणदसणवीय सुहमत्तहेव नवग्गाहण अगुरुल घुमव्वावाहं वत्तीमगुणसयुक्ताय कामवाणविनाशनाय पुष्प ।। ४ ॥ चरुवर प्रचुर क्षुधा नहीं मेटत पूर परौ इन ताई। है। भाप श्राप कर पुष्पचाप घर मम उर शरण उपाई।
यह निश्चय करि पुष्प भेट घरि मांगू वर शिवराई। ऐसा पाठ भी है।
प्रथम
पूजा
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