________________
स
वि०
पदरी छन्द जय करग कृपारण सुप्रथममवार, मिथ्यात सुभट कीनो प्रहार।। दृढ कोट विपर्यय मति उलंधि, पायो समकित थलथिर अभंग ॥१॥ निज पर विवेक ग्रंतर पुनीत, आतम रुचि वरती राजनीत।। जग विभव विभाव असार एह, स्वातम सुखरस विपरीत देह ॥२॥ तिन नाशन लोनो दृढ संभार, शुद्धोपयोग चित चरण सार । । निर्ग्रन्थ कठिन मारग अनूप, हिंसादिक टारण सुलभ रूप ॥३॥ द्वयबीस परीषह सहन वीर, बहिरंतर संयम धरण धीर। द्वादश भावन दशभेद धर्म, विधि नाशन बारह तपसु पर्म ॥४॥ शुभ दयाहेत धरि समिति सार, मन शुद्धकरणत्रय गुप्त धार । एकाकी निर्भय निःसहाय, विचरो प्रमत्त नाशन उपाय ॥५॥ लखि मोहशत्रु परचंड जोर, तिस हनन शुकल दल ध्यान जोर। आनन्द वीररस हिये छाय, क्षायक श्रेणी प्रारम्भ थाय ॥६॥ पूजा बारम गुरण थानक ताहि नाश, तेरम पायो निजपद प्रकाश ।
प्रथम