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महा पुन्य शिवपदकमल, ताके दल विकसान ।
मुनि मन भूमर रमरण सुथल, गंधानंद महान ॥ॐ ह्री ग्रहपुण्य सकुलायनम अर्घ्यं ॥ ९६४ मति श्रुतश्रवधि त्रिज्ञान युत, स्वयं बुद्ध भगवान ।
मिद्ध ऋतयुगमे मुनि व्रत धरो, शिवसाधकपरधान ॥ॐ ह्रीं ग्रर्हं व्रताग्रयुग्यायनम प्रर्घ्यं । १६५ परम शुक्ल शुभ ध्यानमे, तुम सेवन हितकार ।
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संत उपासक आपके, कर्मबंध छुटकार ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमशुक्लध्यानिने नमःप्रयं । ९६६ क्षारवार इस जलधिको, शीघ्र कियो तुम अन्त । गोखुरकार उलधियो, धरो स्व भुज बलवंत ॥ॐ ही पहं ससारसमुद्रता र कजिनाय नमः एक समय मे गमन कर, कियो शिवालय वास ।
काल अनंत अचल रहो, मेटो जग भूम त्रास ॥ ह्रीं श्रीं क्षेपिष्ठाय नमःग्रर्घ्यं । १६८। पंचाक्षर लघु जापसे, जितना लागे काल ।
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प्रतिम पाया शुक्लका, ध्याय बसै जग भाल ॥ ह्री प्रपचलध्वक्षरस्थितये नमः मध्यं । पूजा प्रकृति त्रयोदश शेष है, जबतक मोक्ष न होय ।
सर्व प्रकृति थिति मेटकै पहुँचेशिवपुर सोय ॥ॐ ह्रीमहंत्रयो दणप्रकृतिस्थितिविनाशकाय
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