________________
स्व प्रदेश निष्कम्प है, द्रव्य भाव विधि नाश । सद्ध इष्टानिष्ट निमितधरै, निज आनन्दविलास॥ॐ ह्रीमह निष्कपप्रदेशजिनायनम मध्यं । वि०१ उचित क्षमादिक अर्थ सब, सत्य सुन्यास सुलब्ध । ३६० तिन सबके स्वामीन,पूरण सुखी सुअब्ध ॥ ह्रीमह उत्तमक्षमादिगुणान्धिजिनाय०३
महा कठिन दुःशक्य है, यह संसार निकास। तुमपायो पुरुषार्थ करि,लहोस्वलब्धि अवास॥ह्री महंपूज्यपादजिनाय नम मध्य । परमारथ निज गुरण कहें, मोक्ष प्राप्तिमें होय। स्वारथ इन्द्रियजन्य वे,सो तुम इनको खोय ॥ॐ ह्रींग्रहपरमार्थगुणनिधानायनम'प्रध्य। पर निमित्त या भेद करि, या उपचरित कहाय । सो तुममें सब लय भये,मानो सुप्त कराय॥ ही अहं ब्यवहारमुप्ताय नम अध्यं ।१४७॥ स्व पदमे नित रमन है, अप्रमाद अधिकाय। निज गुरण सदाप्रकाशहै,अतुलबलीन पाय॥ ह्रींग्रह प्रतिजागरूकाय नम प्रय।१४- पूजा सकल उपद्रव मिटि गये, जे थे परकी साथ। निर्भय सदा सुखी भये, बंदूंनमि निजमाथ॥ ह्रीअहं प्रतिसुस्थिताय नम.अध्यं ।१४४
wwwwwwwaranna
अष्टम
३६°