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तुम लक्षण सूक्षम महा, इन्द्रिय विषय अतीत । सिद्ध वचन अगोचर गुरगधरी,निर्गुण कहत सुनीत॥ह्रौप्रहं प्रगुणायनम अध्या९२६॥ - वि०६ अगुरुलघू पर्याय के, भेद अनन्तानन्त । ३८८ । गुरण अनंत परिणामकरि,नित्यनमे तुम संत॥ ह्रीमहंप्रनतानन्तपर्यायाय नम.अयं ।
राग द्वेष के नाशते, नहीं पूर्व संस्कार । निज सुभावमे थिर रहै, अन्य वासना टार ॥ॐ ह्री अहंपूवसम्कारनाशकायनम अध्य गुरण चतुष्टमे वृद्धता, भई अनन्तानन्त ।
ॐ ह्रीप्रहं अनन्तचतुष्टवृद्धाय नम.प्रयं । आर्ष कथित उत्तम वचन, धर्म मार्गअरहन्त। ६ सो सब नाम कहो तुम्ही,शिवमारगके सत॥ॐ ह्रीपहँ प्रियवचनाय नमःअध्यं ६३३॥ | महाबुद्धिके धाम हो, सूक्षम शुद्ध अवाच्य ।
चार ज्ञान नहीं गम्य हो, वस्तुरूप सो साच्य ॥ॐह्रीप्रहं निग्वचनीयाय नम.अगे। पूजा सूक्षमतें सूक्षम विष, तुमको है परवेश । प्रापै सूक्षम रूप हो, राजत निज परदेश ॥ॐहीअहं अनीशाय नमः अध्यं ॥९३५।।
अष्टम
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