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निज सन्मति शुभ नारसो, मिले रलै अरधांग।
ईश्वर हो परमातमा, तुम्है नमू सर्वांग ॥ॐ ह्रीमह अर्द्धनारीश्वराय नम.प्रध्या७५२ B, नहीं चिगे उपयोगसे; महा कठिन परिणाम । सिद्ध महावीर्य धारक नम तुसको आठों जाम ॥ॐह्रीं ग्रह रुद्राय नम अध्यं ॥७५३॥
गुण पर्याय अनन्त युत, वस्तु स्वयं परदेश । स्वयं काल स्व क्षेत्र हो; स्वयं सुभाव विशेष ॐ ह्रीमहं भावाय नम प्रर्ण । ७५४।।। सूक्षम गुप्तः स्वगुरण धरै, महा शुद्धता धार।। चारज्ञान धर नहीं लखै, मै पूजू सुखकार ॥ ह्रीमहंगभकल्याणकजिनायनमःअध्य शिव तिय संग सदा रमें, काल अनत न और ।
अविनाशी अविकार हो, महादेव शिरमौर ॥ॐही महंसदाशिवाय नम.प्रध्यं ।७५६, ६. जगत कार्य तुमसो सरै, सब तुमरे आधीन ।
सबके तुम सरदार हो, आप धनी जगदीन । हो अह जगत्का नम मध्यं ७५ पूजा महा घोर अंधियार है, मिथ्या मोह कहाय । । जगमे शिव मंग लुप्तथा,ताको तुम दरशाय ॥ ह्रींग्रहअन्धकारातकायनम.अय७५८ ॥
अष्टम
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