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ज्यों शशि किरण उद्योत है, पूरणं प्रभा प्रकाश । सिद्ध० क
कलंधिार सौह सु इम, पूजते अघ-तम नाश ॥ ह्रीअहं पूर्णकलाघरायनमःमध्य ६८६ वि० जन्म मरणको अादि ले, जगम क्लेश महान । ३५४ तिसके हता हो प्रभू, भोगत सुख निर्वाण ॥ ह्रीमह सर्वक्लेशहराय नम अध्या६६.'
धू व स्वरूप थिर है सदा, कभी अन्त नहीं होय । अव्यांबांध विराजते, पर सहायको खोय ॥ॐ ह्रीमहं प्रौव्यरूपजिनायनम.प्रध्यं ६६१ व्यय उत्पाद सुभाव है, ताको गौण कराय।
अचलप्रनंत स्वभावमे तीनलोकसुखदाय ॥ह्रीअहं अक्षयानतस्वभावात्मकजिनाय 'स्व ज्ञानादि चतुष्ट पद, हृदय माहिं विकसायें। 'सोहंत है शुभ चिह्न करि,भवि आनंद कराय॥हीमहँश्रीवत्सलाछनायनमःअध्यं। । धर्म रीति परकट कियो, युगकी प्रादि मझार। - भविर्जन पोषे सुख सहित,आदि धर्मअवतार॥ॐ ह्रीमहंम टिब्रह्मणेनम अयं ।६६४ पूजा
चतुरानन परसिद्ध हैं, दर्श होयं चहुँ ओर। 'चउ अनुयोगबखानते, सब दुख नासौ मोर॥ ह्रीमहं चतुर्मुखाय नम अर्ण ।६९५॥
अष्टम
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