SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ nerarmouronnrenournoanneman तुम सम और विभव नहीं, धरो चतुष्ट अनंत । क्यों न करो उद्धार अब, दास कहावै 'संत' हीपई पद्वितीययिमयधार कायनम. जामे विघन न हो कभी, ऐसी श्रेष्ठ विभूत । ६ पाई निज पुरुषार्थ करि, पूजत शुभ करतूत ॥ ह्रीमहं प्रभवे नम प्रयं ।।४०३।। तुम सम शक्ति न औरकी, शिवलक्ष्मीको पाय । भोगैसख स्वाधीन कर, बंदू तिनके पाय | होमहं पदिनीय कपारकायनम प्रन्यं । है तुमसे अधिक न औरमें, पुरुषारथ कहुँ पाइ। हो अधीश सब जगतके, बंदू तिनके पांइ॥ही प्रहं प्रयोश्वराय नम अध्यं ॥४०५॥ । अग्रेश्वर चउ संघ के शिवनायक शिरमोर। पजत हैं नित भावसों, शीश दोऊ कर जोर॥हीप प्रमोशाय नमःमध्य ।४.६॥ । सहज सुभाव प्रयत्न विन, तीन लोक आधीश । प्रिप्टम शुद्ध सुभाव विराजते, बंदू पद धर शीश ॥ॐ ह्रीं ग्रह सर्वाधीशाय नम प्रध्य ४.७ छायक सुमति सुहावनी, बीजभूत तिस जान । तमसै शिवमारग चलै, मैं बंदू धरि ध्यान ॥ॐ ह्रींपहं प्रघोशिये नमामध्यं ।४०८३ पूजा ३१३ namin
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy