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सिद्ध
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मानस्तम्भ निहारके कुमतिन मान गलाय । समोसरण प्रभुता कहै, नमू भक्ति उर लाय॥ ह्रीप्रहमानस्थम्भायनमःमध्य २९७ सुरदेवी संगीत कर, गावै शुभ गुण गान । भक्ति भाव उरमे जगे, बंदत श्रीभगवान ॥ ही अहंसगीतार्हाय नम मध्य'।२६८। मंगल सूचक चिह्न है, कहै अष्ट परकार। तुम समीप राजत सदा, 'नमूअमंगल टार॥ह्री ग्रहप्रष्टमगलाय नम मध्य २६६। भविजन' तरिये तीर्थसो, तुम हो श्रीभगवान । कोई न भंगे पान जिन, तीर्थ चक्रसो जान ॥ॐ ह्रीमहंतीर्थचक्रवर्तिनेनमःअध्यं ।३..। सम्यग्दर्शन धरत हो, निश्चै परमवगाढ।' संशय आदिक मेटिके, नासो सकल विगाढ़ः॥ॐ ह्रीं अहंसुदर्शनाय नम अयं ॥३०१, कर्ता हो शिव काजके, ब्रह्मा जगकी रीति। वर्णाश्रमको थाप, प्रकटायी शुभ नीति ॥ ॐ ह्रीं महं कत्रे नमःअध्य ।।३०२।। सत्य धर्म प्रतिपालके, पोषत हो संसार ।
पूजा यति श्रावक दो धर्मके, भये नाथ सुखकार ॥ ह्रीं प्रहंतीर्थम नम अयं ।३.३॥
अष्टम
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