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दर्श ज्ञान सुख भोगते, नेक न बाधा होय। अंतुल वीर्य तुम धरतं हो, मैं बंदूंहूँ सोय ॥ ही अतुलवीर्यायनम अध्यं ।१६६ शिवस्वरूप प्रानन्दमय, क्रीडा करत विलास। महादेव कहलात है, बन्दत रिपुगणनाश ॥ॐह्रीं प्रहं यज्ञार्हाय नमःप्रयं ॥२०॥ महा भाग शिवपति लहो, तासम भान न और। सोई भगवत है प्रभू, नमूपदाम्बुज ठौर ॥ ह्री अहं भगवते नम अयं ।।२०।। तीन लोकके पूज्य है, तीन लोकके स्वामि । कर्म-शत्रु को छय कियो, तातै अरहत नाम ॥ॐहीग्रह अहते नम'मध्यं ।।१०२।। सुरनर पूजत चरण युग, द्रव्य अर्थ जुत भाव । महाअर्घ तुम नाम है, पूजत कर्म प्रभाव ॥ॐ ह्री ग्रह महार्धाय नम अयं ॥२०३।। शत इन्द्रन करि पूज्य हो, अहमिंद्रनके ध्येय । द्रव्य भाव करि पूज्य हो, पूजक पूज्य अमेय ॥ॐ ह्री महंमधवचितायनम अध्यार ४ . अ
अष्टम छहो द्रव्य गुरणपर्यको, जानत भेद अनन्त। . . महापुरुष त्रिभुवन धनी, पूजतहै नित संत ॥हीअहंभूताथयज्ञपुरुषायनम अध्य२०५
पूजा
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