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मंगल रूप अनुपम सोहै, ध्यान किये नितं प्रानन्द होहै। स. साधु भये शिव साधनहार, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ वि०
ॐ ह्री साधुमगलस्वरूपाय नम अर्घ्य ॥ ४१४ ॥ २३६ पाप मिटै तुम शरण गहेते, मंगल शरण कहाय लहैतें। साधु.॥
___ॐ ह्री साधुमगलशरणाय नम. अयं ॥ ४१५ ।। देखत ही सब पापं नसे है, प्रानन्द मंगलरूप लसे है। साधु.॥
ॐ ह्री साधमगलदर्शनाय नम अध्यं ।। ४१६ ॥ जानत है तुमको मुनि नीके, पाप कलाप मिटै तिनहीके । साधु.॥
ॐ ह्री साधुमगलज्ञानाय नम अध्यं ॥ ४.७ ॥ ज्ञानमई तुम हो गुरणारासा, मंगल ज्योति धरो रविकासा। साधु.॥
ह्रो माधुज्ञानगुणमगलाय नम. अध्यं ॥ ४॥८॥ मंगल वीर्य तुम्हीं दर्शया, काल अनन्त न पीप लगाया। साधु.॥ - ओ ह्री साघुवीर्यमगलाय नम प्रेयं ॥ ४१६ ।। वीर्य महा सुखरूप निहारा, पाप बिनां नितं ही अविकारा। साधु.॥
मो ह्रो साधुवीर्यमगलस्वरूपाय नमः ॥ ४२०॥
मतमो
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