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पंचाचार श्राचारसाधशिवपदलियो, वास्तव में ये गुणनिजमें परगटकियो सिद्ध० निजस्वरूपथितिकरण हररणविधिचार है, परमारथश्राचार्यसिद्धसुखकार है ॐ ह्री सूरिपचाचारगुणेभ्यो नमः श्रध्यं ॥ २०६ ॥
वि०
२०० गुरणसमुदाय सरूपद्रव्य प्रातममहा, परसोंभिन्न प्रभेद निजातमपदलहा । निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचार है, परमारथश्राचार्य सिद्धसुखकार है ॐ ह्री सूरिद्रव्यगुणेभ्यो नमः अर्घ्यं ।। २१० ।।
वीतरागपरणतिरच ही सुखकारजू, परमशुद्धस्वयंसिद्ध भयो अनिवारजू निजस्वरूपथितिकरणहरणविधिचार है, परमारथप्राचार्यसिद्धसुखकार है ॐ ह्री सूरपर्यायगुणेभ्यो नमः श्रध्यं ॥ २११ ॥ (छन्द चचला, एक हस्व एक दीर्घ )
आप सुक्खरूप हो सु, और सौख्यकार होत ।
ज्यू घटादिको प्रकाश कार है सुदीप जोत ॥
सूरि धर्मको प्रकाश सिद्ध धर्म रूप जान ।
मैं नमू त्रिकाल एकही प्रभेद पक्षमान ॥ २१२॥ ॐ ह्री सूरिमगलेभ्यो नम अध्यं ।
षष्ठम्
पूजा
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