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जल शुद्धि मंत्र ओ ह्रा ह्री ह ह्रीं ह्र. नमोऽहते भगवते श्रीमते पद्म-महापम-तिगिंछ-मरि-गुण्डरीक-महा. पुण्डरीक-गगा-सिधु-रोहिद्रोहितास्या-हरिद्वरिकाता-सीता-सीतोदा-नारी-नरकाता-सुवर्णरुप्य२३ कुलारक्ता-रक्तोदा-पयोधि-शुद्व-जल-सुवर्ण-घट-प्रक्षिप्त-नवरत्न-गधाक्षत-पुप्पाचितमामोद पवित्र कुरु कुरु झ झ झौ झी व व ह ह म स त त प प द्रा द्रा द्री द्री ह स स्वाहा ।।
मगल कलश स्थापन करते समय निम्न मत्र बोलेॐ ही अहं म्पस्तये मंगल-कुमं स्थापयामि स्वाहा ।
फिर कुण्डों के कोणो पर चार छोटे कलश स्थापित करें, और निम्न मत्र पढेॐही स्वस्तये चतुः कलशान स्थापयामि स्वाहा । उक्त चारो कलशो पर या अलग चार घृत के दीपक स्थापित करे तव निम्न श्लोक व मत्र बोले
रुचिरदीप्तिकर शुभदीपकं, मकल-लोक-सुखाफरमुज्ज्वलं । तिमिर-ज्याप्तिहर प्रकटं सदा, ननु दधामि सुमंगलकं मुदा ।
ॐ ही अज्ञान-तिमिरहरं दीपकं संस्थापयामि ।
___फिर 'ॐ हीं नीरजसे नमः' यह वोल कर भूमि को पवित्र करे तथा 'ॐ ही दर्प । ६ मथनाय नमः' यह पढ कर डाभ का आसन विछावे। ॐ ही पवित्रतरजलेन द्रव्य-शुद्धिं करोमि स्वाहा । यह पढकर हवन सामग्री को शुद्ध करे।।
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