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हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४४॥
ॐ ह्री सिद्धमगल सम्यक्त्वेभ्यो नम. अध्यं । अस्पर्श अमूरति चिनमय मूरति, अरस अलिंग अनूप । मन अक्ष अलक्षं ज्ञान प्रत्यक्षं शुभ अवगाह स्वरूप ॥ ले जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४॥
- ॐ ह्री सिद्धमंगलावगाहनेभ्यो नम. अध्यं । अव्यक्त स्वरूपं अमल अनूपं, अलख अगम असमान । अवगाह उदर धर वास परस्पर भिन्न भिन्न-परनाम ॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार॥१४६॥
ॐ ह्री सिद्धमंगलसूक्ष्मत्वेभ्यो नम अध्यं । अनुभूति विलासी समरस रासी, हीनाधिक विधि नाश । विधि गोत्र नाशकर पूरण पदधर, असंवाध परकाश ॥
सप्तमी
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