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वन गिरि नगर गुफादि, सर्व थलसो शिव पाई। सिद्धक्षेत्र सब ठौर बखानत, श्री जिनराई ॥११३॥
ॐ ह्री स्थलसिद्ध भ्यो नम अध्यं । नभही मे जिन शुक्लध्यान, बल कर्म नाश किये। प्राउ पूर्ण वश ततछिन, ही शिववास जाय लिये ।११४॥
'ॐ ह्री गगनसिद्ध भ्यो नमः अध्यं ।। आयु स्थिति सम अन्य कर्म-कारण परदेशा। परसै पूरण लोक, प्रात्म, केवली जिनेशा ॥११॥
ॐ ह्री समुद्घात-सिद्धेभ्यो नमः अध्यं । केवलि जिन विन समुद्घात, शिववास लिया है। स्वते स्वभाव समान, अघाती कर्म किया है ॥११६॥
ही असमुद्धातसिद्ध भ्यो नम अध्यं ।
उल्लाला छन्द । तिन विशेष अतिशय रहित, सामान्य केवली नाम है। सिद्ध भये तिहँ योगते, तिनके पद परिणाम है ॥११७॥
ॐ ह्री साधारणसिद्ध भ्यो नमः अध्यं ।
पष्ठम्
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पूजा
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