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सुख ज्ञान वीर्य दर्शन सुभाव, पायो सब कर प्रकृती अभाव। सिद्ध० हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ।। वि०
ॐ ह्री अर्हल्लोकोत्तमअनन्तचतुष्टयशरणाय नम अध्यं ।
अडिल्ल छन्द । दर्श ज्ञान सुख बल निजगुणये चार है, आतमीक परधान विशेष अपार है इनहींसो है पूज्य सिद्ध परमेश्वरा, हम हूँ यह गुणपाय नमन या करा॥
ॐ ह्री अहंदनन्तगुणचतुष्टाय नमः अर्घ्य ॥८६॥ क्षयोपशम सम्बाधित ज्ञान कलाहरी, पररण ज्ञायक स्वयं बुद्धि श्रीजिनवरी इनहींसो हैं पूज्य सिद्ध परमेश्वरा, हम है यह गुरणपाय नमनयात करा॥
ॐ ह्री अहंनिजज्ञानस्वयभुवे नम अयं ॥६॥ जनमतही दश अतिशय शासनमें कही,स्वयंशक्तिभगवानापतिनकोलही इनहींसों है पूज्य सिद्ध परमेश्वरा, हम हूँ यह गुरणपाय नमनयात कराई
- ॐ ह्री अर्हद्दशातिशयस्वयभुवे नमः अध्यं ॥ ११ ॥ ये दश अतिशय घातिकर्म छयको करै, महा विभवको पायमोक्ष नारीवरै पूजा इनहींसो हैं पूज्य सिद्ध परमेश्वरा, हमहूँ यह गुरणपाय नमनयात कर।। ६१७४
ॐ ह्री अहंदशप्रतिशयाय नमः अयं ।। ६२ ।।
सप्तमी