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सिद्ध०
वि०
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युगपति लोकालोक विलोकन, है अनन्त हगधारी । गुप्तरूप शिवमग दरसायो, तिनपद धोक हमारी ॥८॥ ॐ ह्री अर्हद्दर्शन गुणाय नम अर्घ्यं । घटपटादि सब परकाशत जद, हो रवि किररण पसारा । तैसो ज्ञान भान रहतको, ज्ञेय अनन्त उधारा ॥६॥ ॐ ह्री अर्हज्ज्ञानगुणाय नमः श्रर्घ्यं । श्रासन शयन पान भोजन बिन, दीप्त देह अरहंता ।
ध्यान वान कर तान हान विधि, भए सिद्ध भगवंता ॥१०॥ ॐ ह्री द्वीगुणाय नमः श्रयं । सप्तसत्त्व षट् द्रव्य भेद सब जानत संशय खोई । ताकरि भव्य जीव संबोध, नमूं भये सिद्ध सोई ॥११॥ ॐ ह्रीत्सम्यक्त्वगुणाय नम अध्यं । ध्यान सलिलसों धोय लोभमल, शुद्ध निजातम कीनो । परम शौच अरहंत स्वरूपी, पाय नमू शिव लीनो ॥१२॥ ॐ ह्री अरहतशौचगुणाय नम अयं ।
सप्तमी
पूजा
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