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सिद्ध वि.
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सर्व दर्वसो भिन्न है, नहिं अभिन्न तिहुँ काल । नमू सदा परकाश धर, एकहि रूप विशाल ॥२०६॥
___ॐ ह्री एकत्वस्वरूपाय नमः अध्यं ।। सर्व दर्वते भिन्नता, निज गुरण निजमें वास । नमू अखंड परमातमा, सदा सुगुरण की राश ॥२०७॥
ॐ ह्री एकत्वगुणाय नम अयं । सर्व दर्व परिणामसों, मिले न निज परिणाम । नमं निजानंद ज्योति घन, नित्य उदय अभिराम ॥२०८॥
ॐ ह्री एकत्वभावाय नम अयं । चौपई-पर संयोग तथा समवाय, यह संवाद न हो _ भाय । नित्य अभेद एकता धरो, प्रणमूद्वैत भाव हम हरो ॥२०६॥
___ॐ ह्री द्वैतभावविनाशकाय नम अयं ।। पूर्व पर्याय नासियो सोई, जाको फिर उतपादन होई । षष्ठ अव्यय अविनाशी अभिराम,शाश्वत रूप नमू सुखधाम ॥२१०॥
ॐ ह्री शाश्वताय नमः अध्यं ।