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नाश सु पूर्वक हो उतपादा, सत लक्षण परिणति मरजादा। सिद्ध क्षय उपशम तन क्षायक पेखा, ध्यावत हूँ मन हर्ष विशेषा 17801
TEET | नित्य रूप निज नित पद माहीं, अन्य स्प पलटन हो नाहीं। द्रव्य-दृष्टिमें यह गुण देवा, ध्यावत हैं मन हर्ष विशेषा 11६118
मापनमनमा । कर्म नाश नो स्व-पद पाव, रज्च मात्र फिर अन्त न पाये। यह अव्यय गुण तुममें देखा, ध्यावत हूँ मन हर्ष विशेपा ॥१६
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पर नहीं व्याप तुमपद माही, परमें रमण भाव तुम नाहीं । निज करि निजमें निन लय देवा, ध्यावत हैं मन हर्ष विशेषा ॥१६३ पनिमारमा पर।
नारी अनंताभिधानो, गुणाकार जानो। घरो पाप सोईनमानखोई।१३ १३
लोगनगागराय नमः ।