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अन्य नहीं चहत निज शुद्धता मे लियो॥
ॐ ह्री परिमाणविमुक्ताय नमः अयं ॥१०॥ वि. तोमर छन्द-दृग ज्ञान पूरणचन्द्र, अकलंक ज्योति अमन्द ।
निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित पूजहूँ चिद्रूप ॥१८१॥ ॐ ह्री ब्रह्मस्वरूपाय नमः अध्यं । सब ज्ञानमयी परिणाम, वर्णादिकोनहिं काम । निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित पूजहूँ चिद्रूप ॥१२॥ ॐ ह्री ब्रह्मगुणाय नमः अध्यं । निज चेतनागुण धार, बिन-रूपहो अविकार । निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित पूजहूँ चिद्रूप ॥१८३॥ ॐ ह्री ब्रह्मचेतनाय नम अध्यं ।
__ सुन्दरी छन्द । अन्य रूप सु अन्य रहै सदा, पर निमित्त विभाव न हो कदा।। कहत हैं मुनि शुद्ध सुभावजी, नमू सिद्ध सदा तिन पायजी ॥१८४॥ १३॥
ॐ ह्री शुद्धस्वभावाय नम. अयं ।
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षष्ठम् पूजा