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सिद्ध वि. ११८
तुम ताहि नशायो शिवगति पायो नमित लहू भवपार ॥११४॥
ॐ ह्रीं नरकगत्यानुपूर्वीछेदकाय नम. अध्यं । निजकाय छांडकरि अंत समय मरि होय पशू अवतार, विग्रहसु चाल में अन्तराल मे धरै पूर्व प्राकार । सो तिर्यंच नाम करि गावत गणधर प्रानुपूर्वी सार । तुम ताहि नशायो शिवगति पायो नमित लहूँ भवपार ॥११५
ॐ ह्री तियंचगत्यानुपूर्वीविमुक्ताय नमः अध्यं । समकितसों मर वा कलेश करि धरहि देवगति चार, विहग्रसु चाल मे अन्तराल मे धरै पूर्व प्राकार ॥ सो देव नामकरि गावत० ॥तुम ताहि नशायो० ॥११६॥
ॐ ह्री देवगत्यानुपूर्वीविमुक्ताय नम अयं । । हो मिश्र प्रणामी वा शिवगामी वरै मनुष्यगति सार, विग्रहसु चाल मे अन्तराल में धरै पूर्व प्राकार । सो मनुष्य नाम करि गावत गणधर अनुपूर्वी सार ।
षष्ठम
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