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________________ वि० (यज्ञोपवीतधारण)-पूर्व पवित्रतर-सूत्र-विनिर्मितं यत् प्रीतः प्रजापतिरकल्पयदंगसगि।। सिद्ध० सद्भूषणं जिनमहे निजकन्धरायां यज्ञोपवीतमहमेष तदाऽऽतनोमि ।। ॐ नम परमशान्ताय शान्तिकराय पवित्रीकृतायाह रत्नत्रयस्वरूप यज्ञोपवीतं दधामि, १२ मम गात्र पवित्र भवतु अहँ नम स्वाहा। (मुकुटधारण)-पुन्नाग-चंपक-पयोरुह-किकरात-जाति-प्रसून-नव-केशर-कुन्दमाद्यम् । देव ! त्वदीय-पद-पकज-सत्प्रसादात मूनि प्रणामवति शेखरक दधेऽहम् ॥ ॐ ह्री मुकुट अवधारयामि स्वाहा । कुण्डल धारण-एकत्र भास्वानपरत्र सोमः सेवा विधातुं जिनपस्य भक्त्या । ___रूप परावृत्य च कुण्डलस्य मिषादवाप्ते इव कुण्डले दे। ॐ ह्री कु डल अवधारयामि स्वाहा । हार धारण-मुक्तावली-गोस्तन-चन्द्रमाला-विभूषणान्युत्तम-नाक-भाजां। ___ यथार्ह-संसर्गमतानि यज्ञ-लक्ष्मी-समालिंगन-कृद्दघेऽहम् ॥ ॐ ह्री हार अवधारयामि स्वाहा । इस प्रकार अलकार आभूपण धारण करके स्नान योग्य भूमि का प्रक्षालन निम्न प्रकार करना चाहिए। अप्टम पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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