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द किं नाम तेण मंतेण? तीए भणियं विवो पुत्तुप्पत्ती अवेहवं ॥ ५५ ॥ एगंतहियं एयं ममंति तुट्टेण मन्नियं तेण । इय-16
रीवि ठिया तहियं दुहावि मोक्खं अहिलसंती ॥५६॥ तओ। सवायरेण सर्व गिहकिच्चं कुणइ पच्चयनिमित्तं । सयणासंण अट्ठाण माइणा दंसइ सिणेहं ॥ ५७॥ णाणावंजणपक्कन्नसुंदरं कुणइ सुंदरं पायं । घणगोरसाइपउरं परिवेसइ विप्पजणदइयं ॥ ५८ ॥ अविय ॥ जोयइ तं सा वरभोयणेहिं नय लोयणेहिं निद्धेहिं । सायइ सययं चिय माणसेण सच्छेण ण जलेण ॥ ५९॥ दंसिय कारिमनेहं तह तीए पत्तियाविओ एसो । जह मन्नइ एयाए वसामि हियाए अहं चेव ॥ ६॥
परिसोसिओ य अप्पा आयंविलओमभोयणाईहिं । ण्हाणुघट्टणपमुहं चत्तं तह देहपरिकम्मं ॥ ६१॥ अण्णसमयम्मि ६ सहसा रयणीए पच्छिमम्मि जामम्मि । अक्कंदिउं पवत्ता सा नियमे पुन्नपायम्मि ॥ ६२॥ भणिया दिएण सुंदरि! किं ते है वाहइ सरीरमज्झम्मि? । तीएवि सदुक्खं चिय भणियं अफुडक्खरं सूलं ॥ ६३ ॥ तं दट्ठण विसन्नो वेयरुई कुणइ उव
समोवाए। मणिमंतोसहिभेयसओ य परओ जहा णाणं ॥ ६४ ॥ गुणसुंदरीवि मणयं गोसे उवसंतवेयणा सणियं । 18| कुणइ खलंतपडती कंदंती गेहकिच्चाई ॥ ६५ ॥ भणइ य अहं अजोग्गा तुह घरवासस्स सुहय ! निब्बग्गा । जेणेरिसंद
महंत उवद्वियं दारुणं दुक्खं ॥ ६६ ॥ तिवा सिरम्मि वियणा डज्झइ अंग हुयासगसियंव । छिज्जति व अंताई फुडंति सपंगसंघीओ ॥ ६७ ॥ इय दुहदावलित्ता मण्णे पाणे चिरं न धारिस्सं । तं पुण तवेइ अहियं न पूरिया जं तुह महासा ॥६८॥ मह पावाए कज्जे सुइरं आयासिओ तुमे अप्पा । मायण्हियाणुधाविरहरिणाण वनय फलं पत्तं ॥ ६९॥ अन्नं च । कार्ड परस्स पीई जं रइयं अप्पणो सुहं पबिं। तस्स विवागमणाहा सहामि अइदारुणं मन्ने ॥७०॥ दाऊण मए
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