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श्रीउपदेशपदे
॥३२९॥
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मणुभूयं । लक्खियलोयणचरियं परोप्परं पुच्छियं कहियं ॥ ५९॥ सोउं लोयणवसणं धम्मो धणियं विसायमावन्नो।
ऋद्धिसुन्दअवयारकारणम्मिवि कारुणिया सज्जणा हुंति ॥ ६०॥ भणियं च पिए ! धन्ना जिणगणहरमाइणो महाभागा। जेसिं
६रीचरितम्अब्भासत्था चयंति जीवा असुहभावं ॥ ६१॥ अम्ह पुण संनिहाणे दूरे ता सुद्धधम्मपडिवोहो । पिच्छाऽसुहपरिणामो हूँ अभासत्या चया
अहिययरो चेव संजाओ ॥ ६२॥ जेणम्हं उवयरियं दावियतीरेण अइनिरीहेण । सोवि कह एत्थ पत्तो जीवियसंदेहधणहाणिं? ॥ ६३ ॥ इय तं सोयंताई ताई दिवाइं गामनाहेण । रूवमउवं तेसिं दट्ठण विचंतियं चेवं ॥ ६४॥ मयणोब पियासहिओ एसो खलु कोवि उत्तमो पुरिसो। विहिविलसिएण केणइ एगागी इह समायाओ ॥६५॥ तम्हा करेमि उचियं गोरवमेयस्स देवरुवस्स । अन्भुट्ठाणं च तहा अणुरूवं निययविहवस्स ॥ ६६ ॥ कड्डिजति गइंदा पंके खुत्ता महा
गईदेहिं । आवइवडिया सुयणा सुयणेहिं समुद्धरिजति ॥ ६७ ॥ इय चिंतिऊण बहुमाणसारमाभासिओ वणी तेण । ६ र धरिओ पवरावासे कयप्पसाओ धुयविसाओ ॥ ६८ ॥ कालोचियववसाया वटुंति धणस्सऽणाउलमणस्स । वच्चंति तत्थ है 8 दियहा सुहेण धम्मस्स धन्नस्स ॥ ६९॥ सोवि पुण लोयणो कंठपत्तपाणो पुराणकडेण । कट्ठण णट्ठचित्तो लग्गो तीरे
समुदस्स ॥ ७० ॥ कहकहवि लद्धसन्नो ठिओ तयासन्नपल्लिगामम्मि । तत्थ य मच्छाहारे गिद्धो गिद्धोब मोहंधो ॥७१॥ 1 वलियं च से सरीरं रसंसदोसेण थेवदियहेहिं । इय दुट्ठकुट्ठनिद्दानिट्ठियचेट्ठो जियइ कटुं॥७२॥ अविय । धम्मविघाएण
णरो इच्छंतो माणि पियसुहाई। गयबुद्धिलोयणो लोयणोब दुहभायणं होइ॥ ७३ ॥ संपत्तो य भमंतो कयाइ थाणेसरं 5॥३२९॥ दुहकिलंतो । उदयत्थनिग्गयाए दिट्ठो धम्मस्स जायाए ॥ ७४ ॥ संवेगघणघिणारसवसेण उप्फालिओ य दइयस्स। कारु
पिडिया सुयणा सुयणमाओ॥ ६८ ॥ कालोतिपाणी पुराणकडेण मिलो गिद्धोब में
मस्स धन्नस्स ॥ ६९ ॥ सोय शासनपल्लिगामम्मि । तत्य य मक७२ ॥ अविय । धम्मााणेसर ६ ॥३२९॥
माकहकहवि लढमनोयहाह । इय दुइङ्गनि दुहमायणं होइ । बलियं च स पियसुहाईस जायाए॥ "