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शपदे
या॥३३१ ॥ मोक्खा कयाई । भगवं आम्मच इमं सुलद्धति गम्मि ठियाणं माता । वत्ता जह महर्वच बंदिओ होइ । कयलक्लयर सहसंवनामम्मि ॥ ३३ चरणहं पंडवाण सर्व
श्रीउपदे- देवीए निक्खंता ॥ ३३० ॥ जाया समणा खंतिक्खमा य गुणरायरायहाणि समा । अजाए सुबयाए सिस्सिणिया दोवई ने नागश्री
टू जाया ॥ ३३१॥ मोक्खंगाई कमेणं सवाई अहिजियाई अंगाई । छट्ठट्ठमाइकट्ठ तवं अणुढेउमारद्धा ॥ ३३२॥ ते थेरा अंतर्गत
भगवंता पुरंतरं विहरिया अह कयाई । भगवं अरिद्वनेमी कुणइविहारं सुरद्वाए ॥३३३॥ परिभावंति य पंचवि जइ नेमी धर्मरुचि॥३०८॥
कहंचि वंदिओ होइ । कयलक्खणा भवामो जम्मं च इमं सुलद्धति ॥ ३३४ ॥ जाव सुरट्ठाभिमुहं चलिया थेरे अणन्न- द्रौपदीचित्ता णं । पत्ता य हत्थिकप्पं नयरं सहसंवनामम्मि ॥ ३३५ ॥ उजाणम्मि ठियाणं मासक्खवणस्स पारणगदिवसे। 5 चरित्र* तइयाए पोरिसीए नगरस्संतो अडंताणं ॥ ३३६ ॥ लहुयाण चउण्हं पंडवाण सवणेसु कहवि संपत्ता । वत्ता जहज्ज राओ ६ समाप्तिः
उज्जंते निव्वुओ नेमी ॥ ३३७ ॥ तक्खणमेव नियत्ता जेणेव जुहिद्विलो मुणी तत्तो । साहिति जहावत्तं भत्तं पाणं च टू उज्झंति ॥ ३३८ ॥ भाविति अहो! विसमाणि कम्मुणा चेद्रियाणि जेणम्हं । दूरपरक्कमसाराण वंछियत्थोन सिद्धोत्ति
॥ ३३९॥ किं जीविएण एत्तो जिणविरहकरालजलणदड्डेण । कायवमओ गंतुं सेत्तुज्जे अणसणं कुणिमो ॥ ३४०॥ गंतूण
तत्थ दोमासियाए संलेहणाए संलिहिया । उप्पन्नाणुत्तरणाणदंसणा निव्वुया जाया ॥ ३४१ ॥ अजावि दोवई सिक्खिऊण ( सामाइयाणि अंगाणि । एक्कारस पजते मासक्खवणेण कालगया ॥ ३४२ ॥ वंभम्मि देवलोए उववन्ना अयरदसगपरम"ठिई। तत्तो चुया समाणा महाविदेहम्मि सिज्झिहिही ॥ ३४३ ॥ एत्य पसंगेणागयमेयं जम्मंतराणुगं चरिअं । भणियं है नागसिरीए धम्मरुइच्चिय इहं पगओ॥ ३४४ ॥ इति श्रीधर्मरुचिकथानकं सप्रसंगं समाप्तम् ॥ ६४८॥४२॥
॥३०८॥ मनोगुप्ताबुदाहरणमाह;-मनोगुप्तावुदाहर्त्तव्यायां कश्चित् साधुः।ध्याने धर्मध्यानलक्षणे शुक्लध्यानलक्षणे वा निश्च-४
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