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श्रीरपदेशपदे
॥१७॥
हैसियमह सुमरिऊण रयणवईए संचलिओ । अण्णेसणत्थमासमसंमुहमालोयए न तयं ॥ ३८८ ॥ कं पुच्छामि पउत्तिं एवं है १चोलक
चिंतिय पलोइयाउ दिसा । न य कोई सच्चविओ ठिओ सरंतो तयं चेव ॥ ३८९ ॥ खणमेत्ताओ एगो कल्लाणाकारओनिदर्शनम. परिणओ य । पत्तो पुरिसो परिपुच्छिओ य भो भो महाभाय !॥ ३९० ॥ एवंविहनेवत्था कल्ले वा अज वा न दिट्ठत्ति । बाला काइ भमंती इमाइ अडवीइ मज्झम्मि' ॥ ३९१॥ तेणुत्तं भत्तारो किं पुत्तय! तीइ होसि, आमंति । भणिए कुमरेण भणाइ सा मए भद्द! रोयंती ॥ ३९२ ॥ दिवाऽवरण्हसमए कासि तुमं पुच्छिया कुओ चेह । किं कारणं इमस्सा सोयरस कहिम्मि गंतवं? ॥ ३९३ ॥ कहियमिमीए गग्गरगिराइ किंचि वियाणिया ताहे । भणिया जहा मम चिय तं पुत्ति! दुहित्तिया होसि ॥३९४ ॥ तीए च्चिय चुल्लपिउस्स साहियं सायरं च सगिहम्मि । नीया तेण तुम चिय गवेसिओ न उण दिवो सि ॥ ३९५॥ ता सुंदरमिह जायं जं मिलिओ संपयंति भणिऊण । सो सत्थवाहगेहं नीओ विहिओ य वीवाहो ॥ ३९६ ॥ रयणवईए तस्संगलालसो जा गमइ दिवसाई । ता वरवणुमरणदिणो समागओ कप्पियं भोज ॥ ३९७ ॥ भुंजंति बंभणाई बंभणनेवत्थधारगो ताहे । तत्थागओ वरधणू भोयणकजेण भणियं च ॥ ३९८ ॥ भो भो
साहिजउ भोजकारिणो दूरदेसओ एगो। चउवेओ चूडारयणसन्निभो सयलविप्पाण ॥ ३९९ ॥ मग्गइ भोयणमुयरम्मि ६ जस्स भत्तं कहंपि संपत्तं । उवणमइ भवंतरवत्तिणोवि तुम्हाण पियरस्स ॥ ४००॥ सिहं कुमरस्स तयं भोयणविणिउत्तएहिं पुरिसेहिं । बाहिं विणिग्गओ जा ता कुमरो वरधणुं नियइ॥ ४०१॥ किंचि रसंतरमपुवमेव सवंगमुबहतेण । ॥१७॥ आलिंगिओ पविट्ठो य मंदिरे मजिओ संतो॥४०२॥ कयभोयणकरणिजो य पुच्छिओ तेण जह वयंस! तुहं । वो.
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