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KARMA
ACCE-CRORE
मासाणं अपरित्तयाण तीए मुहं सुहेणं तो। बोलीणाण पुरंदरदिसि व रविमुज्जलं जणइ ॥ १३६ ॥ पुत्तं मिलिओ महि लालोओ एवं परोप्परं भणइ । जइ न पिया पचइओ होतो ता उच्छवो गरुओ ।। १३७ ॥ होतो आसि स सण्णी तिबमणणाणसंगओ सुण । महिलाण समुल्ला जाईसरणो तओ जाओ ॥१३८ ॥ चिंतेइ न पचज मज्झमणुविग्गमाणसा एमा। घेत्तुं दाही उधेयकारणं होमि एईए ॥ १३९ ॥ तिवपसारियवयणो रोवेडं लग्गओ जह न एसा । आसइ भुंजई मुयई मुहेण गिहकम्ममायरई ॥ १४०॥ एवं जा छम्मासा अहागया सीहगिरिगुरू तत्थ । नयरुजाणम्मि ठिया विहिए सम्झायजोगम्मि ॥ १४१॥ पत्ते भिक्खावसरे धणगिरिसमिया भणंति सीहगिरि । भगवं सन्नायगलोगदंसणत्थं गिहे जामो ॥ १४२ ॥ गुरुणाणुमणिया ते सप्पणिहाणा कुणंति उवओगं । जा ता उत्तमफलयं किंचि निमित्तं समुप्पण्णं ॥ १४३ ।। गुरुराह गया संता सचित्तमियरं व जं लहेजाह। तं सबमुवादेजह जमज सउणो महं जाओ ॥ १४४॥ तो दोवि सुनंदाए गिहे गया सावि निग्गया तत्तो । उभयकरधरियपुत्ता कुलमहिलाओ तहा मिलिया ॥१४५ ॥ पण| मिय पाए भामइ मए चिरं पालिओ इमो वालो। संपइ पुण पडिगाहसु जओ समत्था न एत्तो हं ॥१४६॥ इय भणियम्मि स पभणइ पच्छाया करेसि जइ कहवि । तइया किं काय सा पभणइ इमोजणो सक्खी ॥ १४७॥ जइ किंचि भणामि अहं इय दढबंधं करेत्तु तीए समं । धणगिरिणा सो वालो पत्तो बंधम्मि संगहिओ ॥ १४८॥ तयणंतरं न गेयर जाणइ जाओ जहा अहं समणो । नीओ गुरुपयमूले सलक्खणत्तेण सो गरुओ ॥ १४९॥ धणगिरिणो वाहुं नामिऊण जा नेइ भूमिमह सूरी । भरियं भाणं परिभाविऊण हत्थं पसारेड ॥ १५० ॥ सो वि य भमीपत्तो जा जाओ ||
म.२१