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बार ता तीए ॥ ७३ ॥ गिहसालम्मि निहितं निरिक्खमाणस्स तक्खणं तस्स । भणइ तओ कहमेयं रयणमिणं मइलियं नमप? ।। ७४ ॥ मुद्धो मि तुमं मोयमि जमेयमप्पाणगं न उण समण|| एयाओवि विलीणं रयणसमो मं जमणुमरमि ॥ ७५ ॥ अनिपिवाममेसो तीए पडिचोइओ पडिनियत्तो। इच्छामो अणुसहि भणिय गओ गुरुसमीवम्मि ॥ ७६ ।। अदुकरदुकरकारगो त्ति एवं स थूलभद्दमुणी। चिरपरिचिया असद्धी सम्मं अहियासिया इमिणा ॥७७॥ तुमए अदिठदोमा उयकोसा जाइया कयवया य । निव्भच्छिओ पवन्नो पच्छित्तं चित्तसारंति ॥ ७८ ॥ कइयाइ नंद| रण्णा दिना तुहेण नियगरहियस्म । कोसा सा पुण निच्चं पसंसए थूलभद्दमुणिं ॥ ७९ ॥ कह अन्नो तह इत्थीपरीसहं जिणइ जियमयणपन्भारो। जो न ममाओ तिलतुसतिभागमित्तंपि संखुद्धो ॥८०॥ संति च्चिय अच्छेरगकरा जणा भूरिणो इह लोए । नह थूलभद्दसरिसो भूओ होउ चिय कयाइ ॥८१॥ एवं तग्गुणगउरवखित्तमणा उवचरेइ तं न वहा । नियमोहरगुणायणहेरं सा अन्नया नीया ॥ ८२ ॥ नियविन्नाणस्स य दसणथमावाससोगवणियाए । आरोवियघणुदंदो अंवगपिंडीइ कंडाणि ॥८३॥ अणुपुंखं लायंतो ता खिवइ जाव नियकरभासं । आणीया खिविऊणं छिन्ना मा अन्दचंदेण ॥ ८॥ सा भणइ सिक्खियस्सेह दुकरं किं व पेच्छसिमंपि । नट्टविहिं तो सरिसवरासिट्टियसुइय
ग्गेमु॥८५॥ कयना हरिसमुही भणाइ भो! कस्स मच्छरो गुणिसु। तं चिय मणे वहती तह भणइ सुभासियं *पियं ।। ८६ ॥ न दुकरं अंबयलंबितोडणं न दुकरं नच्चय सिक्खियाए । तं दुकरं तं च महाणुभावं जसो मुणी पमय
गर-'पमरो'
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