________________
श्रीउपदे- रकारयस्स अन्भुद्विऊण सप्पणयं । भणियं गुरुणा तव सागयं ति ते मच्छर पत्ता ॥ ५८ ॥ तिन्निवि भणंति खमगा!
गणिकाशपदे पेच्छह सूरी कहं इमं भणइ । एस अमच्चस्स सुओ अतवोवि पसंसिओ एवं ॥ ५९॥ मणमज्झठवियरोसेण पाउसम्मी
रथिकद्वा० समागए दुइए। सीहगुहाखमगेणं भणिओ सूरी अहं जामि ॥ ६०॥ उवकोसाइ गिहम्मी कोसावेसाइ लहुगभइणीए। ॥८८॥
तं वोहेमि किमूणो कोवि इह थूलभद्दाओ॥ ६१॥ उवउत्तेणं गुरुणा णायं पारं न पाविही एसो । पडिसिद्धो तहवि गओ तो मग्गियलद्धवसहीओ॥ १२॥ लग्गो वासारत्तं काउं सा भदिगा सुणइ धम्मं । अइफारसरीरा भूसिया यॐ अविभूसिया चेव ॥ ६३॥ सो मयणगोलगो इव जलणसमीवे तओ पलोयंतो । जाओ अईवदढभाववजिओ फुरिय
कामसरो॥ ६४ ॥ वजियलज्जो अज्झोववण्णओ मग्गिउं तओ लग्गो । निउणमईए तीए भणिओ किं देसि तं अम्हं ?* on६५॥ सो भणइ नत्थि मे किंचि जेण णिग्गंथओ अहं भद्दे! । तहवि य भणसु किमिच्छसि लक्खं, निसुयं च तेणेवं
॥६६॥ नेवालजणवए जह रायाऽपुवस्स साहुणो देइ । कंबलरयणं सयसहस्समोल्लमेसो तहिं जाइ ।। ६७ ॥ लद्धं तं तत्थ / महापमाणवंसस्स नूमियं मज्झं । ठइयं छिद्दे जह तं न कोवि किंचिवि वियाणाइ ॥ ६८॥ नगिणप्पाओ जा एइ एक्कओ विस्समं अकुणमाणो । ता कत्थवि य पएसे सउणो वासइ जहा लक्खो ॥ ६९॥ एसो इहेति वुत्तं चोरवई सउणरुयवियारं तु । जा पासइ ता पासइ एक चिय इंतयं समणं ॥ ७० ॥ अवहीरियसउणरुओ जा चिट्ठइ ता पुणोवि वाहरइ । हत्थगओ सयसहसो एसो तुभं अइगओ त्ति ॥ ७१॥ संजायकोउगेणं भणिओ चोराहिवेण सो गंतुं । जं इत्थमस्थि
॥८ ॥ तत्तं भयरहिओ तं कहेसु तुमं ॥७२॥ कहियं कंबलरयणं वंसंतो एत्थ अस्थि तो मुक्को । आगंतुं गणियाए समप्पई
5497739390686380*