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________________ (च) नीति ( १ ) चाणक्य नीति दोहे । आदिप्रथम पत्र नहीं मिलने से दूसरे प्रस्ताव का ५ वां पद्य यह है: धर्म मूल राजाम्दे, तप के करि ब्राह्मण कोई । वित्र जहां पूजे तहां, धर्म सनातन होई ॥ ५ ॥ धर्मष्टि राजा होत्रे, अथवा पापी होई । नीह पीछे सब लोक ही, राजा प्रजा सब दोई ॥ ६ ॥ अन्त पंगी फल श्रम पत्र आदि राजा हंस हयराज । पंडित गज अम सिंह, ए थान भ्रष्ट शुचि राज ॥ ११ ॥ इनि चाणका नीति संपूर्ण । लेखन काल-लि. पं० धर्मचन्द मंवत् १६०७ मिगसर सुदी ७ विक्रम पुर मध्ये । प्रति-पत्र-२१५, पंक्ति-६, अक्षर-२४, माइज-६४४ । [स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] ( २ ) चाणक्य राजनीति भाषा । पद्य १२२, बारहट उमेदराम सं० १८७२ भादि श्रीगुरुदेव प्रताप से सुकवि सुमत अनुसार । रचत नीत चाणक रुची, सब अन्धन को सार ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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