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डिल्लीपुर सौ रोपि पग, करी खडग की मंड | ८ || तिनके श्रानंदसिंध भए, सूर दानि गुन जानि । गउ विप्र के पास पुनि, गहे वेद की वानि ॥ ६ ॥ गोपाचल नल दुर्ग प्रति, सुतों राइके थान । कुलदेवत युटवाइ पुनि, रघुवंसी जग जान ॥१०॥ श्रब कविकुल वरनन सुनौ, ताको कहै विचार । जोधा जोसी प्रगट महि, वेद कम गहै सार ॥ ११ ॥ तिनके जोसीदास मय, धरम तनौ अवतार । चलै वेद विधि को गहै, श्रांक तिनि पुनिवार ॥१२॥ तिनके मृत गोपाल भए, दांनि जानि जसवंत । रीति गहै सत जुगत नी, हरि चरनिनि मे संत ॥ १३ ॥ हरिजी पातीराम भट्ट, तिनके सत मतिधीर । क-रनी कर'वतनी करै हरे और के पीर ॥ १४ ॥ हरिजी के सुत प्रगट महि तास नाम कविराम ।। देहि देहि लागी है, ताकै श्राठी जाम ॥ १५ ॥ ब्रह्मपुरी सम स्यौपुरी तिहां विप्रको धाम । रूपवंत जराह पनि, न म विष कविराम ॥ १६ ॥ निनि अपने बुद्धि बरा प्रगट, म्यानमार किय सार । क्यों द करि नचियोभीया, चौरासी की धार ॥ १७ ॥ गावन की मति मममी, बार बृहस्पतिवार । शत्रहमै चौतीम मग, ग्यानसार तत्मार ॥ १८ ॥ पठन गुनत पनि सनत , मारग मक्ति विचार । गम मिलन को गम किया, म्यानसा-र निजमार | |
अन्त
ग्यानसार निजसार है, कठिन खट्ग की धार ।
रामकहें पगधार धरि. धार कहे जै पार ॥ २२ ॥ सुर-नर-नाग मजस्नवर, सुनौ वात इकसार । राम पार पहुंचाइ है, सनि यर उपति पार ॥ २३॥