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________________ गवरी मत गणपतं, मन सागर दीजै मो पतं ।। तुझ पसाय तुरतं, सारंगधर गाऊ सुंडाला ॥१॥ गजमुख गणपत राय, मागी मुझ करो मो मायं । गुण राधे वर गायं, पावू बुद्धि रावले पसायं ॥ २ ॥ लंबोदर गणपत सुंडाला, एक रदन बहो धुद्धि बिसाला | लाल बरण सोहे कर माला, मतवाला तुभ्यो नमः ॥ ३ ॥ अविरल वाणी प्रापिये, मुझ दे अक्खर सार । तुझ किपा त मैं कहूँ, हरि गुण ग्रंथ अपार ॥ गणपती तु ईसगण, गुण दातार गहीर । मो मत देहु महेस मुत, उमयासुत वर वीर ॥ धन्त गज उधार यह प्रन्थ है, धारै चित कर लेत । ताकी प्रमु रिचा कर, प्यार पदास्थ देत ॥ गुण अजीत पण विध कयौ, रामकृष्ण निजदास । नित प्रत प्रभु के संग रहै, यह मन धरके श्रास ॥ कलस कचित्र राज गरीब निवाज जाय प्रहलाद उबारे । , , , द्रौपदी चीर बधारे ॥ "" , कुरंद सुदामा कप्पे । " , , ध्रुव इव चल कर थप्पेये ॥ गज प्राह चिन्हे ही तारीया, रीझे खोजे लाछ कर । अजमाल चरण वंदन करे, धन तौ लीला चक्रधर ।। ७६ ॥ इति श्री श्री थी जी क्रित गजउधार ग्रन्थ लिख्यते ( समात) प्रति-गुटकाकार पत्र २६, पं० २२, अ० २२, प्रति कुछ जल से भी जी, भाषा में राजस्थानी का प्रभाव [स्थान-ॉ० मोतीचन्द्रजी संग्रह]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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