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________________ ( २२१ ) बार प्रदीत बनाउ और नष तर असलेषा अ. सुहवन जोग राति षट घटि गतरेषा तिहि समय ध्यान धिर चित्त कियो देषन साहिब को दुरग तनि पाप पाप नृप लषपति सुमन सिधाये मुम सरग ॥ ३६ ॥ यह समयौ लषधीर को स्नै परै सुम्यान सकल मनोरथ सिद्धि है परम सुधा रस पनि ॥ १० ॥ इति श्री भट्टारक श्री १०८ श्री श्री कुअर-कुसल सूरी कृत श्री महाराउ लषपति रवर्ग प्राप्ति समय संपूर्णम् ॥ लिखितं पं० श्री ज्ञान कूसलजी गणि तशिष्य पं० कीर्ति कुशन गणि लिखिता ग्राम भी मानकूत्रा मध्ये । सम्बत् १८६८ ना वर्षे शाके १७३४ ना प्रवर्तमाने मासोत्तम मासे प्रथम माधव मासे शुक्ल पक्ष तृतीया तिथौ भौमवासरे इदं महाराउ-लपति जी ना मरसीया संपूर्णौ भवता । श्री कच्छ दे से। विशेष विवरण महाराउ लषपति के साथ जो १५ सतियां हुई थी उनका वर्णन इस प्रकार है। कविन छप्पय । राउ लषपति सरग सिधाये पीछे सुम दिल पन्द्रह बाई, प्रथम जदूपत्ति कामह दिव्य जल सदाबाई सरस राज बाई हुवरूरी निंदू बाई निपुन पुहम बाई गुन पूरी, राधा रूलाछि बाई मुरुचि बाई हीर वर्षानिय सातौं सतीनि सिंगार करि पिय 4 चली प्रमानिये ॥ ५ ॥ बाई देव विनीत श्रास बाई प्रति प्रोपी पहा आई पेवि रूचि प्रीतम सौं रोपी अफुओं बाई बाप जोति बहु जेठी बाई रंमा माई रूचिर मेघ भाई मन माई
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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