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मथि कोठार मन्डाण, विविध महिलाइत मंदिर । धति उतंग पावास, अजब चित्राम सु इंदिर ॥ घोपमा अमल राजित सहट, जानौं सुरपुर लाजिहैं । जगन्नाथ कहै जेसांणगढ़, तहां अमरेस विराजि हैं ॥ ५११ ॥
दूहा
तहाँ राजै रावल अमर, वंस रूप खटत्रीस । करन जिसो दाता सकत, तेज जिसो दिन ईस ॥ ५१२ ॥ ख्याग त्याग बडभाग जस, श्रोपम नमल सुरेस ।। मब गन की चाहक सरस, कहोयत अमर नरेस ॥ ५१३ ॥ पाट कर अमरेम के, जमवन्तसंघ सुजाव । गनी बहुत श्रादर लहै, चातर मौज सुचाव ॥ ५१४ ॥ गबलजी के राज मी, सब जन सखी उलास । म्यान चातुर्ग भेद रम, सदा रहत चित हास ॥ ५१५ ॥ तिनकी छाया वसतु है, जोसी कवि जगन्नाथ । लिखत पढत नित हरम्ब नित, गहति गुनन की गाथ ॥ ५१६ ॥ देत अमर पादर सदा, रीम. मौज दातार । ताहि मया ने चित हरख, कीनौं ग्रन्थ विचारि ॥ ५१७ ॥ सरस छंद भाखा सुगम, कायौ बहुत गुनगाध । द्विज माधव कामा चरित, रच्यो सुकवि जगन्नाथ ॥ ५१८॥ सम्बत् सतरै सै वरस, वीते चउतारीस । जेठ शुकल पूनिमि दिवमी, रच्यो बारि दिन ईस ॥ ५१६ ।। ता दिन यह पूरन करयौ, माधव चरित अनूप । रच्यो ज भाखा सरस रस, मुनि मुनि रीझत भूप ॥ ५२० ॥ यह माधव कामा चरित, सोसै मुनै ज कोई ।। ताहि को हरिहर अमर, मदन प्रसन नित होइ ॥ ५२१ ॥
इति श्री माधव चरित कथा जोसी जगन्नाथ कृत सम्पूर्ण ॥ सम्बत् १८१६ भाद्रया सुदी १३ दिने लिखितं ।