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________________ अंत ( १८१ ) दोहा करुन नदन धानन सुज, प्रसन बदन र स्वेत । गननायक दायक सुमति सुत संकर बरबेत ॥ १ ॥ , नामसार के पटमतें, प्रगटै धूध सुभाय । धरम अरथ कामक मुक्त, प्यार पदारण पाय || २ || नामसार के नांमजो, दुढि स्मृति सब लीन्ह । फतेसिंघ राठो यह, तापर भाषा कीन्ह ॥ ३ ॥ प्रथम येक संख्या : ब्रम्ह येक कुमा अनत, येक दन्त गनराज | सुक टष्ट fee भुमियक, रिव रथ चक्र बिराज । अपूर्ण पत्र २० । प्रति पत्र पंक्ति १८ प्रति पंक्ति अक्षर १९, गुटका [ सीतारामजी लालस संग्रह गुटका ] ( ५ ) पारसी पारसात नाम माला । पत्र ३५३, म० कुअर कुशल ऊथ-बज भाखा कृत पारसी पार सात नाम माला लिख्यते ॥ दोहा परम तेज जाकौ प्रगट, रचत जगत आराम । बंदत सविता चरन बिब, कुँवर स कविता काम ॥ १ ॥ सूरज की साँची भगति, हित सौं जौ हिय होय । कबिता तौ बाढे कुँवर, सुनन सु कबि जस सोय ॥ २ ॥ सविता की सेवा किये, पसरे कबिता पूर | विनाकी जग मैं छती निधि वाकै मुषनूर ॥ ३ ॥ अथ गनेश की स्तुति । कवित छप्पय । उदर सुधिर गिरि अतुल, हार पैंनग हिय हरषित । दंत येकु भुष दिपत बैन, अमृत सम बरषित ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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