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________________ (१६६ ) इति नेमनाय गजीमती बारहमासो सम्पूर्णम् । प्रति-रेखता बारहमामा सम्मलित, पत्र ६, पं. १३, अ.४० [अभय जैन प्रन्थालय] (११) बारहमासा । पा-१३ । रचयिता-वृन्द । अथ स्तवन लिख्यते । वसन्त राग। श्रादि मास वसंत मधुर महि सुन्दर, लाग रह्यौ रित सुक्षरवानी । मा नीली धरा तरू एकलहकत फूलत पूर महक सुहानी । प्राणी मनोहर केसर घोर के, कंचन मुरत पूज रचानी । क्षेत्र के मास में आदि जिनेसर, पूज रचै कवि वृन्द सहानी ॥ १ ॥ इम द्वादश मास में श्रादरता 5 ए, नेह शृगार धयों मन हो । नित देव निरंजन ध्यान धरै, धन ते नर मानत अन्दर ही । सहु सुख मिले जिन ध्यावन में, नित पावत पुर्ग निवावरही । कवि वृन्द कहै जिन चोविस कु, सब धान परागन धावन ही ॥ १५ ॥ इति बारेमासा सवैया संपूर्ण। लेखन काल-१६ वीं शताब्दी । प्रति-गुटकाकार । पत्र ३ । पंक्ति-१०। अक्षर-५८ । साइज-६|1|| [अभय जैन ग्रन्थालय ] (१२) बारहमासा । रचयिता-केशव। आदि सुख ही मुख जह राखिण, सिख ही सिख सुख दानि । सिखा चेपु कनौ वरनि, अपद बारह वानि ॥ १ ॥ लोक लाज तजि राज रंक, निरसक विराजत । जोई पाक्स सोई करत कहत, पुनि सहन न खाजत ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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